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अधूरे ग्रन्थ- आदि पुराण को पूरा किया। अमोधवर्ष के पुत्र अकाल के समय में गुणम मे अपना उत्तर पुराण समाप्त किया। राष्ट्रकूटों के पश्चात् वाक्यों के हाथ मैं राज्य शक्ति आते ही जैन धर्म का ग्रास प्रारम्भ हो गया। जैन मन्दिरों में से जैन मूर्तियां उठाकर फेंक दी गई और उनके स्थान पर पौराणिक देवताओं की मूर्ति स्थापित कर दी गई, ऐसा विवरण भी मिलता है। इसके मूल में जैव और वैष्णव धर्म का प्राध्याय ही कारण था।
दक्षिण भारत में जैन धर्म पर जब पारी आघात होने लगे ठीक से सम में दक्षिन के नगर राज्य ने जैन धर्म की प्रगति में योग दान दिया । इस राज्य के उच्च पदस्थ कर्मचारी जैन धर्मावलम्बी थे। हरिहर द्वितीय के सेनापति इका जैन के स्टूटर क तथा अवलम्बी थे। यही नहीं विजयनगर की रानियां भी जैन धर्म पालखीथी । श्रवणबेलगोल के काले देवराम महाराज की रानी पीपादेवी
का जैन होना प्रकट है।
इस प्रकार दक्षिण भारत के लगभग डमी राजाय ने प्रमुख मनु रूप में जैन धर्म की सेवा की और उसकी प्रगति में साधारण योग दिया। समपि १४वीं शादी तक दिन में विभिन्न धर्मो के प्रकार व्यादायक द्रवेश के कारण जैन धर्म दिन हो हो गया परन्तु फिर भी वह अपना गहरा स्थान बना ग
पर्व
की महान निधि छोड़ गया। वस्तुतः दक्षिण की मावा में
विवाहित्य का चयन पर्व शोध मदन मावश्यक है। विभिन्न प्राि
भाषावों में विरचित कवि का
कम होने पर
की
रिझो
विदेश में अधिकारी भी कवि और
उन्होंने
प्राचीन राजस्थानी प्राचीन प्राचीन मराठी और माली माया में
की, या विवम्बरी विवानों ने दिन का क्षेत्र अपनाया। पर इसका
यह नहीं है कि उत्तरी भारत में दिवम्बर
का ही नहीं अजमेर,
मार, दिल्ली, मेरठ, कानपुर मादि ने कवियों द्वारा प्रणीय रचना मिली है।
स्थानों में विम्बर सिरहार गरी