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प्रयदाता थे। बास्यों ने अनेक जैन मन्दिर बनवारी । नाटक में तो राजकीय प लागों में भी जैन धर्म मा लिया। वीं शताब्दी गय राजा तैलय के मेनापति मल्लप की पुत्री मरियमये भाव जैन धर्माचारिती थी जिसने सोने और कीमती पत्थरों की डेढ़ मार लिया बनवाई थीं। बदम्बराजा कीशिव की पत्नी पाललदेवी का स्थान भी धर्म प्रेमी जैन महिलामों में अEPE बा जिसमे पावनाय त्यालय मौर ब्रहमाजिनालय बनवाया।
यही नहीं कि बंग ने जन धर्म की प्रगति में योग दिया। मंगवा जैन वर्ष को राजधर्म बनाया गया गंगामों में न विदर मार, * प्रतिमा की स्थापना की, जैन अस्वियों के लिए कार्य बनवाई और नाचायों गे दाम दिमाधव, अवनीस, पारसिंह मितीय त्या बा-डराय प्रसिदध और पनी । दक्षिण मैसूर (अयनवेलगोला) के विध्यगरि पर गोमटेश की विशाललाय EिRA स्थापित की जो भाग विश्व लिए बार की बस्तु है। स्वयं गाडराय प्रविध विनाम एवं लेखक थे। जैनियों का प्रसिद्ध जन्य- गोपटराव- इन्ही लिय तिला गया। प्रणिमड़ी जैन कवि रत्नपी नयरवार रागवंश की पाति बसत में भी जैन धर्म में योग दिया और साकी प्रमति और नाम नी खादीन
मेरी रविशार करो मही माया मा पारपट मी पानी की सोच का प्रथम मनी रावा बा िभापनि । ममोपसमय मोहा। सिबर
पिन्नों की पता और बहीण लीनागनालाप अपने जैन व्याकरण पर नोति माग
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