SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 134
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लौकिका बासीन रहते थे. गलत है। एक सीमा तक यह है कि संसार में सम्बन्ध नहीं होते थे। पाल्तु मेगास्नी विवरण हम जानते है कि मी पूर्व रतुर्व खादी तक राजा लोग अपने दूतों इबारा बनाक्षी जैन प्रभवों में राजकीय मामलों में स्वत्रता पूर्वक मला माविरा करते थे। म पुलों ने राग्यों की स्थापना कीबी और राग्यवादियों तक जैन धर्म के प्रसहिन्दु बने रहे। कि जैन धर्म प्रची मात मिय पर जो गोर दिया गया इस जाति राजनैतिक प्रयोगति को प्राप्त हो गई। उम जैन कवियों, गुजों व मानों को भाया प्रेम क्या राजकी कार्यों में उनकी प्रगति पर प्रकार या है। दकित में से ही प्रचारकों में जैन धर्म की बादी वा क्या प्रपति की। saa: दक्षिण में साहित्य को प्रदेशों मिलता है. बामिल और नाटक शामिल होक या पास्य मोहन धर्म महान पस मिल मालिवियर • मा० मार लामो वारा पीस कोक का प्रतिदूध जैन है। बरा का सिर । Fधाचा वारा खेलमा प्रविध मिति भी प्रविधि सर्व विदित नवागनों पी का वर्णन किया है। मास्टर इतीपट मे बीता और गरीमरी पर नियों का प्रभाव बताया। विगविगीनामा for Imमारवान्यों की प्रसारमा लागी म धर्म । - Ramr o -ter, प्रो. रामा स्वामी प्रार्यगर। Comparatimammertopriatanorthatanay LanguagesolkILMSeton (1ande1913).
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy