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१०० अशोक के तिरपी - देवनार प्रियवर्ती से स्पष्ट होता है वह पहले जैन धर्म का उपासक था फिर मौge हो गया ।" अशोक का भी सम्प्रतिपी उजैन
धर्म में दीवित हो गया था।
१. अड़ी में धर्म
उड़ीसा में जैन धर्म का महान उपासक कलिंग का राजा बारवेक था। प्रसिद्ध या हवेनसांग कलिंग देश को जैनियों का मुख्य स्थान कहता है। इससे स्पष्ट होता है कि बारने के बाद मी अनेक वर्षों तक धर्म कलिंग में कमा रहा । सारवेल पूरी तरह से जैन था। बारवेश के बाद ऐसा प्रतापी राजा नहीं हुआ। उसने मारत भर के बहियों, जैन उपस्वियों, जैन रिकियों और पंडितों को लपक धर्म सम्मेलन किया। कैम ने वार को -महाविजयी - कीवी के लिए "म राजा" "मिराज" और "धर्म राजा की पदवी दी।" इस तरह जैन धर्म को उड़ीसा में बढ़ा प्रमथ मिला।
३. बंगाल में जैन धर्मः
बंगाल में भी न की प्रगति का इतिहास मिल जाता है। मानवून, मीर मीर वर्तमान आदिनी के जिलों के नाम करम महावीर तथा वर्धमान के धार पर ही दूर है। रमन में कई मूर्तियां मिली है। बाचार्य सिसरोन तेनों में यह कहा जाता है कि - परीक्षा ले से गंगा में धर्म में, मैं और में धर्म का प्रभाव दृष्टिगोचर होता है के अनेक है। प्राचीन पिके से विशेष और ये वावर देवनागरी के साथ नहीं मिल पर प्राचीन विधि
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