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________________ ४- राजस्थान में जैन धर्म : १०१ अशोक के पहले से राजस्थान में जैन धर्म के प्रचार के प्रभाव मिलते हैं। यह भी बहुत सम्भव है कि अशोक के पौत्र सम्प्रति ने राजस्थान में कुछ जैन मन्दिर मनवाये है। बोभा जी ने राजपूताने में जैन धर्म की स्थिति को अजमेर के बहली प्राम के जिला के द्वारा बि० ० ३८६ पूर्व की सिद्ध की है। राजस्थान में अनेक जैन जातिय मोसवाल, पटेलवाल, पालीवाल, बोरवाल, पावकीय, आदि प्रचलित है। चित्तौड़ के प्राचीन कीर्ति स्तम्भ का निर्माण जैनियों मे ही करवाया था । उदयपुर का केशरिया नाथ जैनियों का प्राचीन तीर्थ है। जैन धर्म की सेवा राजस्थान में जून की जिससे इस धर्म को यहां बड़ा मिला। जैनापूर्वी प्रचारकों और कवियों में ही नही जाति रही। साहित्य वजन खूब हुआ। अनेक मंदरों की स्थापना हुई । जैनियों मे राजस्थान में राजकीय पद, मंत्री, दीवान सेनापति, बादि प्राप्त कर जैन धर्म की बड़ी सेवा की। बायू, जैसलमेर, बीकानेर, जोधपुर, उदयपुर, अजमेर, जयपुर आदि प्रसिद्ध नगरों में मकराण्याश्रय प्राप्त जैनियों ने अनेक मन्दिर बनवाये । मनेक ग्रथों की टीकाएं कि क्या बैलमेर मागोर, कापूर, नामेर, बीकानेर मादि स्थानों से प्राप्त इस समस्त प्रान्न भंडारों के मूल में ही जैन धर्म रहा है। ताम्बर जैनियों की ही रही। दिलम्बरों की वेदाम्बरों के म 1 गुजरात वर्गः राजस्थान की ही धर्म की प्रगति की परम्परा उमराव में रही है। बरा का निरनार तीर्थ प्रसिडी नेमिनाथकी है। गुजरात के कालीनगर में विनि। श्वेताम्बरों की अधिक रही है। बरा के राट राजाकों में अमोधर्व जैन धर्म के महान प्रेमी १- राजाने का इ०११-१२ द्वारा शंकर हीराचंद गोदा
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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