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१वीं शताब्दी की प्राप्त अजैन रचनाओं में हिन्दी की तीन कृतियों प्रमुख रूप में
मिलती है:
१- वीसलदेव राe (अजमेर)
१. पृथ्वीराज रासों (दिल्ली)
३- आल्हा ठ
(महोबा)
परन्तु इन ग्रन्थों की परंपरा अनुभुति मध थी अतः इसमें अनेक परिवर्तन होते रहे।
सिदधनाथ साहित्य
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बुद्ध धर्म ने सिद्धों और नाथों की रचनाओं को प्रदान किया। महात्मा दूध था महावीर ने जन भाषा में अपने उपदेश दिए। गीतिकाव्य उनका माध्यम रहा। अतः उनके प्रचार में सरलता बनी रही। साथ ही इनमें दार्शनिक क्लिष्टा मी अधिक नहीं थी। साथ ही साथ राजनीति की विविध करवटों ने भीमति स को बल दिया। वतः शव १५वीं बताब्दी में भक्ति के आज तक मिल जाते हैं।
विविध सम्प्रदाय बने जो
मध्य देव के १वीं से १५वीं शताब्दी की प्रामाणिक प्राप्त साहित्यिक veera पर ईशोध में अद्यावधि कोई सामग्री उपलब्ध नहीं हुई। महुद सम्भव है भौगोलिक वातावरण, आक्रमणकारियों के इन तथा सीलन और कृतियों की सुरक्षा की परम्परा होने से ही उत्कालीन वामिष्टष्ट होगा हो । इतर ग्राहित्य
के बाद वो हिन्दी साहित्य में
परम्परा चलती है।
भी की कामी हिन्दी की विविध बोलियों की सम्मति है।
में लिया हैरान और प्रेम काव्य सेव को माध्यम लाया। कम प्रादेशिक भाषायों में प्राचीन राजस्थानी और यूनी वराहीका धारा मिलता है। दविण में हिंदी (प्राचीन
खाकी
कवियों की रचना
मिलती है। रचनाओं की
ऐसी माजावान उपमें कवियाप्रेमी पोच
धर्मका मादि रामस्वामी
मारवाड, विद्वान,
रामानों