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मी पाटव
नगरों का महत्व है।
निम्बई
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वाड, आबू, अजमेर, दिल्ली, जयपुर, नागौर आदि विविध
इन्हीं परिस्थितियों में आदिकालीन हिन्दी जैन साहित्य की स्थिति पर विचार किया जा सकता है। वस्तुतः इस स्वतोव्याघातों के आदिकाल (१०००- १५०० ई०
के इस उपलब्ध हिन्दी जैन साहित्य का अध्ययन, उसकी पृष्ठभूमि प्राप्त जैन जैन reera की मुख्य प्रवृत्तियों तथा समसामायिक विवेच्य परिस्थितियों के अध्ययन के किया जा सकेगा।