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प्रधान रचनाएं मिल जाती है। जिनका देशी स्वस्य, संगीत की देशी छन्द प्रधान डाले बाल मात्राओं से समन्वित विमिन्न देवी रागों के विकास में आदिकालीन रचनाओं ने महत्वपूर्ण योग दिया है। इन रचनाओं पर विस्तार में प्रकार प्रस्तुत ग्रन्थ के छंद सम्बन्धी अध्ययन के अध्याय में डाला गया है। इन रचनाओं में प्रधान है- रेवतगिरि रास जिनपति मूरि धवलगीत, विड्या विलास पवाड़ो, सरवर गच्छ पट्टावली, विराट पर्व, रंगसामर मेमि फाय, बर्बरी क्या त्रिभुवन दीपक प्रबन्ध।
इस प्रकार संगीत कला की प्रगति में आदि कालीन उत्तर अपांव की रचनाओं ने पाच गोम दिया है। सामन्द्रों की राजसिक या विलास की प्रवृति के कुछ नूजन कलाएं भी पनपी जिनमें रनिवारों की विमला, जल कीड़ा के विविध आयोजन, नाटक रचना, स्नान मंडव स्वमाला का सामन्तों के विशाल प्रसादों में यह निहार देखा जा सकता है। संस्कृति का सामाजिक स्वस्य
सामाजिक बत्वों का सांस्कृतिक विश्लेषण भी बत्कालीन कृत्रियों का प्रमुख योगदान है। संस्कृत प्रास तथा अपात्र के ग्रन्थों में हमारे पास्कृतिक विविध उत्थयों का उल्लेख है। हमारे देश के भारतीय उत्सव हमारी संस्कृति प्राप है। वैवाहिक प्रथानों में मांगलिक उपहार, म कसा राजानों का नगर की बालानों इवारा स्वागत, बावन, विवाहमा बादि उबारना का राडबा बबरी अभिनय गान इन सास्कृतिक उत्थयो, त्योहारों और पापीक है। होमस्या विविध डोगसव समारोहों को भी पर्व मनाया जा मा।
भारतीय संस्कृती मोगमात्य परिवारों का बकार गादि का प्रथा । बिना र जिन्दी के कवियों ने भारतीय स्कृति की समस्याका
राख, काय, परी या गीत ससवन मे रमानों का सर्व दिया जा सकता है।
परिस्थितियां
कि
भारतीय परम्परा में
की परम्परा पाया गया
प्रारम ram,
आदि