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के जैन मन्दिरों से इस ब्यूय पर प्रकार बढ़ता है। दक्षिण में श्रवन स गोल में माहवती की पूर्ति आदि को एतर्थ उद्यान किया जा सकता है। इन मन्दिरों की भूर्तियों को गजनवीं, खिल्जी आदि इस्लामी आक्रमण कक्षाओं में अब ध्वस्त किया। प्रति कला के साथ साथ जैन भवन निर्माण कला का भी विशिष्ट महत्व है। राजस्थान तथा गुजारत में इस कला का वैक्ट्रिय अनेक जैन तीर्थों और मन्दिरों में देखने को मिलता है, जिस पर विद्वानों ने पर्याप्त प्रकार डाला है। इन मन्दिरों स्थित जैन सरस्वती स्था विभिन्न जैन देवी देवताओं की पूर्तियां पी जिन पर डा. उमाकान्त प्रेमानन्द उपनिर्देशक कोरिएन्टल रिसर्च इन्स्टीट्यूट बड़ौदा एक विस्तृत शोध प्रबन्ध प्रकाशित हो चुका है। परन्तु यह स्पष्ट है कि पूर्ति का असावा प्रगति नहीं मिलती जो पहले थी। जातिीन हिन्दी बैन कृतियों में भी मी पूर्तिकला का प्रयावधि कोई विशिष्ट उल्लेख नहीं मिलता । अंगी।
संगीत की इस काल पर्याप्त प्रगति हुई। नृत्य की भी प्राति पर था। भाव वर्ग के दरवारों में संगीत कृत्य या कादम्ब मावास गाबिक में संगीत के विकास नये वरण प्रस्तुत किए विमानों संगीत नृत्य प्रधान था। परन्न गीत के लोकातक स्वरूप में अत्यक्षिक प्रगति ई। मह मे या रास्ता होता। अनेक राम रामनियों का निसान मा। गुबराज पुनित - वाम काम्ब, पुस्तान पारस पारमादिपी मी योग दिया मी पति परानो बार
प्रणिय मा . राजस्थान गोपीमी और प्रत्यक aer mau बोनों प्रों विलिनीकी प्रगति बोल दिया।
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