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सदैव पीड़ित थी। जैन धनिक अपने धर्म प्रचार में सुलकर रुपया सर्व करते थे। अत: साधारण जनता के लिए जीवन स्तर का प्रश्न ही नहीं उठता था। इस प्रकार उमाज की स्थिति कुल मिलाकर असन्तोषजनक थी ।
आर्थिक स्थिति
देव की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। सम्पति तथा व्यापार के स्वामी सेठ तथा धनिक लोग थे। जैन धनिकों के पास बटूट सम्पत्ति थी विशेषकर वैश्य वर्ग अधिक सम्पन्न समा जाता था। मध्य वर्ग तथा वृद्ध वर्ग गरीब था। जिनके पास सम्पत्ति का जमान सदैव देखा जाता था ।
१- व्यापार
देव में व्यापार खूब होता था। सेठों, तथा घनिकों ने अपने व्यापार की पति को इन महाया। राजकीय पुरुषों के लिए बहुमूल्य चीजें बाहर से जाती थी । सेठ तथा व्यापारी वर्ग राजानों को बहुमूल्य वस्तुयं उपहार स्वरूप देते थे। व्यापार के आकर्षण का केन्द्र सिंहलद्वीप बना हुआ था अतः जैन अर्जन अनेक धनिक जहाजों पर मात लादकर अपने देश की चीजों को विदेशों में ले जाकर बेचते थे। क्या वहां से खूब धन कमाकर बारह बारह वर्षों तक देश लौटते थे। अन्तःपुर के लिए जो व्यापारी श्रेष्ठ उपहार कावा उसको राजा चूम प्रदे
मंदिरों में धन का संग्रह
मन्दिरों और देव पूजा में भी देवदासी प्रथा थी। स्त्रियों का व्यापार भी होता था। मन्दिरों में ईश्वर के नाम पर टूट पकत्रित किया जाता था । सोमनाथ का मन्दिर कालीन व्यक्ति का प्रमुख उदाहरण है। पुरानी हिन्दी की रचनाओं में विना विलास माड़ों या जिनदत्व कई में जिनदत्त का व्यापार के लिए माया, हीरा मोदी का जवाबाराव orat amerलीन
व्यापार की स्थिति पर प्रकाश डालता है। इस प्रकार आर्थिक विषमता के कारण देश की नाक कमी वामना करना पड़ता था।
कापी
कानामाकि स्थिति या के बा