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कारण
शंकर ने आठवी शताब्दी में नास्तिकता के विरुद्ध आन्दोलन में ज्ञान और अहिंसा को हाधार भूत मानकर वैराग्य मार्ग का प्रतिपादन पिम्न भिन्न मूर्तियों ईश्वर की शक्ति का प्रतीक समझी जाने लगी। इस्ला के विजेताओं से मूर्ति की रखा करने के कारण इन ब्राह्मणों ने पूजा मैं जाविय बढ़ाया। कर्म का चरम पर पहुंच गया। धर्म में वाड्यावर बढ़ा। बेड़ों के विविध सम्प्रदाय इसी ब्राहमण धर्म की प्रतिक्रिया परिणाम है।
चैव सम्प्रदाय दक्षिण में अधिक फैला। वैष्णव सम्प्रदाय के साथ सम्प्रदाय पी निरन्तर प्रगति कर रहा था। पुराणों का विकास हुआ पुराणों ने सम्प्रदायों के धर्म ग्रन्थ का काम दिया । इष्ट देवता की पक्ति, पूजा बादि अत्यन्त विस्तार से करना पुराणों का मुख्य उद्देश्यवन गया। शिव, मत्स्य, गरुड़ भागवत आदि पुराणों द्वारा यह बातें स्वष्ट हो सकती है। इतना होते हुए भी ब्राहमण धर्म मूलतः कर्मकान्ड ज्ञान दर्शन या ब्रह्मवार को ही प्रधानता देता था अत: जनता के लिए यह सहन प्राय नहीं हो सका। ब्राहमण के दोनों सम्प्रदायों मे यदुमपि मौद्ध और जैन धर्म को गहरा धक्का पहुंचाया पर ब्राह्मण धर्म का महत्व इसलिए अधिक जायगा कि इसी कीड़ा का जन्म हुआ। हों
अनपूर्ण चारायों के प्रतिक बयना
किया और मा मिटाकर परस्पर स्नेह, मन्दि, सौहार्द, और परलोक बाद का उपदेश दिया। बान में और केन की किष्टता से जनता की बात नहीं मिठी और कोलन चला।
क्या मिता तो थी परन्तु फिर
मी उस एक्वा भी। इसका प्रत्येक व्यक्ति अपने मन के अनुसार देवताबों की पूजा कर क्या था। ब्रह्मा की मूर्ति, त्रिदेव पूजा हन्ति पूजा
कल्प
तीन वानरः आचार्य क्यारी ।