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देशी छेदों का स्वरूप स्पष्ट किया है। देवी मंदों के साथ संगीत का अटूट संबंध है। संगीत रत्नाकर मैं भी देवी की परिपामा स्पष्ट की है।' रूंदों के इन देवी समन्वित है- "अही प्रन्धाकार
स्वरूपों में संगीत बाल और राम का विधान
संगीना मार्ग अने देवी बेवा मे प्रकारो कहे मार्ग ने नहीं गान्धर्व पण कहल देवे रामने आये आधारे तेते देशमा स्ढ भयेला गीतो नी गढ़ियों के गस्तो । राग तरंगिनी मार्ग संगीनोटले देशीओ ए देना विषय नथी- 1 राजस्थान में आज भी ये देशी व विविध रूपों में प्रचलित है।
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देवी वेदों का स्वरूप समझने में अनेक प्रकार की रागों का विधान भी किया गया है। इन रागों में गीत लय ताल आदि काआयोजन किया गया है। यह देशी छेदों का डीप्रभाव है कि आधुनिक काल में गीतों को जन्म मिला है। अतः देशी शब्द इस प्रकार है निश्चित रागों में छा जाना छन्दवाचक शब्द है।' इन देवियों में निश्चित रागों का विधान है। जैन कवियों ने दोड़ा, सवैया,
१- (अ) दे दे जाना यहमादयरंजकम
मार्ग व वाय नदेवीत्यभिधीयते -संगीत रत्नाकर पु० ६-७ (ब) मत्त वामुमेय कारेण रचितवाचित
देवी रागादि प्रोक्तमान रंजनम् (वढी प्रथम नाम चतुर्थ प्रबंध ०७१
बघा
२० देखि प्राचीन गुजराती संद: श्री रामनारायण विश्वनाथ पाठक १० २००१ ३- देवी शब्द का रोते अमुक तरेड मी नवादा अमुक छंद नो वाचक है विल यो वदनी तेम व मात्र संगीनोद पर नथी । एक बीबी रोते पण देवीबो स्वस्य विदुष धाय है। कड़ना बहुत प्रबंधों जोता जगावे के घणावरी कढ़वाना प्रारंभ मी अन राम में नाम को होय है तिमा केदारो गोटी रामरमा बाउरी, धात्री, देशा मल्हारस बोरे विष्ट संगीत मा के रागी हो art a safe कही गयो म विष्ट संगीत भी नहि जाणीवा जेवा सामरी देवी मामी व आमा विष्ट संगीतना रामो छवी पण बंधा आपण गुजराती कविता मी की अमुक नियत डावध स्वरावली की दो रचना है। विष्ट संगीतमा म एकगीत एकना जनोपयों गावो हो हो पण तैमा फेर पड़े।एक ज राम मने वाला माता ज्ञान पल्ट्रा वगैर मी मवैया ने अनेक प्रकारनी स्वरावली लावानी हक्क है।पट व नानी नयी स्वी लावामा जी मी कुलता सूची बने सर्जकता रहेली होय आपना प्रथीना कढवा आवी री मानवी बाळा दान पल्टा में स्थान मधी न कहिए तो वाले वो अमुक कार की रुढि पचतिर ज मजाकी के एमव्यति मे बरी राग साथै अनुसंधान के जो पई माई के था गीतों मी जे अनवस्था जोवा, क्यान र देवी ने पदराम सावे अनुसंधान पण महि होय, कदाच एमी राम पारसना मे जावश्यक मीच स्वरोपण नहीं रह्या
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बोलावी हो । । वही ग्रन्थ पू० २०३ ।
हवा तेना आवेला