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चउपाइ सब की देशी डाले बनाली थीं, जिनकी सूचना विविध ढालों मिलती है। जैन रामों में हों और चरपई की देवी का प्रयोग हुभा है। इन देशी चों की मात्रा व मों का स्वर्गीय भूव में महत्वपूर्ण विश्लेषण किया है।'
इस प्रकार इन देशी दो के विम्य का सभ्य अध्ययन किया जा सकता है। वस्तुतः इन अंगीत प्रधान बाल तथा पानिक गुत्तों की विधि रागों और बालों का परिचय इस प्रकार है:
"विन दीपक प्रबंध:
इस रचना में अनेक मालिकों का प्रणयन हुआ हैराणों के आधार पर देशी दो का प्रयोग इस रचना की सबसे की विशेषता है। इसमें बालवृत्तों में परि चरपाकुल, मरहट्ट, इलि क्या गीतिक प्रयुक्त हुए है। इन दों के अतिरिक्त सरस्वती पउल कावट महार और कोल या व्यवदों को प्रयोग
लिया वस्तु बच रना में सर्वत्र परिलक्षित होता है। वस्तु छद को रवि ने राग पहारी तथा उपइ था पद हैदों को मित्रबंध करके प्रयुक्त किया है। रसागर में शिव बस (४,५,४०, ter, ५१, १७, २०, ४१५), वि यार.. ... ...m. १५-11, 4-10, 11 Ra.. . ana-m01-04 -11), यि १ , ५५ , १०५, Am, m-te mom, st-t4, ९८-१०२, १४४-,
m, ११-०८, ate m. am-106१८६-१९, ४.t-10). शिव सरस्वती (m-mRe-m, -10) आदि अनेक बों का प्रयोग
समाँ म कवि ने विभिन्न देशी यो यारी (11) मारी(m) mक, पुपरी -40 गादि रामों को प्रयुक्त किया है। उदाहरणार्थ एक मामारी राम का बल प्रयोग देखिए।
- बी.