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प्रकृति में नाम गणनात्मक प्रवृत्ति प्रद्युम्न चरित और जिनदत्त चरपद में
मिल जाती है। प्रद्युम्न चरित में भी कवि सधा ने अनेक पेड़ों को गिनाया है। साथ ही शस्त्रों की गणना परतेश्वर बाहुबली रस में मिल जाती है। जिनदत्व चप, प्रदुम्न वरित विद्याविलास पवाड़ों आदि रचनाओं में बरात वन तथा भोजन की विविध वस्तुकों का वर्णन मिल जाता है।
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इनके अतिरिक्त भी पकात्मक रूढ़ि विधान में पूरा ग्रन्थ त्रिभुवनदीपक प्रबन्ध पर्याप्त मौलिकता प्रस्तुत करता है। कवि ने उसके सारे पात्र की मौलिक र है। ज्ञान, मन, तन, माया, आदि सब प्रतीक कहि रूपक है। साथ ही वरात वर्णन में भागतिक कयों द्वारा नमक उतारने आदि की क्रियाएं और कड़ियाँ जैन कवियों की कृतियों में उनकी अपनी है। नेमिनाथ काय, नारीनिराम का जादि रचनाओं में ये कड़ियां देवी जा सकती है। (ब) विविध वर्णन सम्बन्धी रुद्रियाः
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विविध वर्मनों की एक लम्बी परंपरा जैन काव्यों में मिल जाती है। हाथी वर्णन, घोड़ों का वर्णन, बरात का वर्णन, जैवनार वर्णम, नगर वर्णन, विविजयवर्धन, स्वारों का वर्णन, क वर्गम विद्याओं का वर्णन नामवर्णन ' बाद वर्षों की कड़ियां इस काव्यों में मिठ बाती है। वे विविध काव्य के कथानक में वैविश्य तथा मौलिकता का समावेद करते हैं। इनमें पहले feat are aur दन अथवा अथवा विचार विवेक का प्रतिपादन अवश्य रहता होगा। परन्तु कालान्तर में धीरे धीरे में गर्मन कड़ियों में परिवर्तित हो गए है। भरतेश्वर बाहुबली राय में इध वर्णन, सवारों नमरों घोड़ों एवं हाथियों आदि
१० स्त्रि के कयाय ६७ और
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नंद गांधी द्वारा सम्पादित
- देवि प्रस्थ के मध्याय ६ २० विमानकी रास-श्री -काति), मानेर भंडार, जयपुर 1) मानेर भंडार, बयपुर |