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आधार
होने के कारण उनका उस भूभाग से सहज (प्राकृतिक) प्रेम होता है।
इस प्रेम को मातृभूमि से प्रेम के रूप में अभिव्यक्त किया जाता है। २. राष्ट्रीयता का सम्बन्ध मातृभूमि की भौगोलिक सीमाओं ( राज
नैतिक रूप में मान्यता प्राप्त ) में रहनेवाले जनसमूह के समान सामाजिक, आर्थिक तथा राजनैतिक हितों से है। इस आधार पर
राष्ट्रीयता निश्चित होती है । ३. प्रत्येक राष्ट्र में राजनैतिक एकता अपेक्षित है और अन्य राष्ट्रों से
उसका सम्बन्ध (विदेश नीति ) इस एकता के आधार पर ही
संभव है। ४. प्रत्येक राष्ट्र (यदि उसे राष्ट्र के रूप में स्वीकृति प्राप्त है) राज
नैतिक दृष्टि से स्वतंत्र है, ऐसा माना जाता है।
ये चार प्रमुख तत्त्व ऐसे हैं, जिन्हें राष्ट्रीयता के सामान्य लक्षण कहा जा सकता है । राष्ट्रीयता के ये लक्षण ऐसे हैं, जिन्हें व्यक्ति को राष्ट्रीय मूल्य के रूप में स्वीकार करना पड़ता है । इन मूल्यों से सहज में व्यक्ति का बचाव संभव नहीं।
ऊपर जो राष्ट्रीयता के प्रमुख तत्त्व बतलाए गए हैं, उनमें प्रथम दोनों तत्त्वों के सम्बन्ध में किसी को आपत्ति नहीं हो सकती। वास्तव में ये दोनों ही तत्त्व राष्ट्रीयता की रीढ़ हैं। विवादास्पद स्थिति तीसरे तत्त्व तथा चौथे तत्त्व में संभव है। तीसरे तत्त्व का सम्बन्ध राष्ट्र की राजनैतिक व्यवस्था ( शासन-पद्धति) से है। चौथा तत्त्व अन्य तत्त्वों का परिणाम है। प्रत्येक तत्त्व का स्वतंत्र रूप से विवेचन नीचे किया जा रहा है।
१. प्रथम तत्त्व सब से प्रधान है- मातृभूमि से नैसर्गिक स्नेह । यह
धरती से सम्बन्ध है और इस सम्बन्ध या मूल्य की रक्षा के लिए अन्य सब तत्त्वों की उपेक्षा की जाती है । स्वतंत्र राष्ट्रों को (जिनमें राष्ट्रीयता के चारों तत्त्व पाए जाते हैं ) हम छोड दें और ऐसे राष्ट्रों के सम्बन्ध में हम विचार करें, जो अन्य राष्ट्रों के दबाव में है या गुलाम है, उस स्थिति में भी उस राष्ट्र ( राष्ट्र नाम की संज्ञा प्राप्त न होनेपर भी ) के नागरिकों में ( मूल निवासियों में ) अपनी धरती से सहज (नैसर्गिक ) स्नेह होता है। इस तत्त्व की अभिव्यक्ति प्रत्येक राष्ट्र के राष्ट्रीय गीत के माध्यम से होती है । 'वन्दे मातरम्' तथा 'जनगणमन' दोनों ही गीतों के अर्थों का यदि विश्लेषण करें तो इस तत्त्व की प्रधा