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________________ आधुनिकता और राष्ट्रीयता नता का बोध होगा । इस तत्त्व की प्रधानता के आधार पर बहुत सा साहित्य रचा गया है और इस साहित्य को राष्ट्रीय साहित्य माना गया है। २. दूसरा तत्त्व : राष्ट्र के नागरिकों के अपन बोध से सम्बन्धित है। यह बोध ऐतिहासिक-बोध है। राष्ट्र के नागरिक अपने आप को पहचाने । अपने आपको पहचानने में उन्हें अपनी उपलब्धियों का ज्ञान होगा। उन्हें अपने भूभाग की सीमाओं का ज्ञान हो । उन्हें अपने भूभाग के इतिहास-भूगोल मालूम हो और इस आधार पर राष्ट्र के नागरिक अपने समान सामाजिक, आर्थिक तथा राजनैतिक हित को समझें। इस बोध के आधार पर प्रथम तत्त्व को चेतनावस्था प्राप्त होती है। इस सम्बन्ध में गुप्तजी की ये पंक्तियाँ उपयुक्त प्रतीत होती हैं : 'हम कौन थे, क्या हो गए हैं, और क्या होंगे अभी। आओ मिलकर हम विचारें, ये समस्याएँ सभी' । यहाँ हम के अन्तर्गत, वे सब नागररिक हैं, जो राष्ट्र के भूभाग ( राजनैतिक सीमाओं में रहनेवाले ) में रहते हैं और समान सामाजिक, आर्थिक तथा राजनैतिक हितों के सम्बन्ध में सोचते हैं। इसपर आधार राष्ट्रीयता जागरण का रूप लेती है और ल्वतंत्रता की ओर अग्रसर होती है। इस प्रकार से लिखा गया साहित्य राष्ट्र की यथार्थ ऐतिहासिक परिस्थितियों से सम्बन्धित होता है । इस आधार पर राष्ट्र के नागरिक एक होते हैं और अपने हितों की रक्षा के लिए प्रयत्न करते हैं। ३. तीसरा तत्त्व प्रमुख रूप से राष्ट्र की राजनैतिक स्थिति से सम्बन्धित है । राजनैतिक स्थिति विवादास्पद होती है । इस स्थिति पर राष्ट्र के नागरिकों की सामाजिक तथा आर्थिक स्थिति निर्भर रहती है। राष्ट्र में राजनैतिक स्थिरता यदि होगी ( सरकार मजबूत होगी ) तो वह राष्ट्र बलवान माना जायगा । इस आधार पर वह स्वतंत्र विदेश नोति का पालन करने में समर्थ होगा। राष्ट्रीयता को सबसे अधिक खतरा, उसकी राजनैतिक-स्थिति से होता है। इस आधार पर ही राष्ट्रीयता को हम राजनैतिक शब्द कहते .. ' हैं। राजनैतिक स्थिति का सम्बन्ध राष्ट्र की शासन-व्यवस्था
SR No.010027
Book TitleAadhunikta aur Rashtriyata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Bora
PublisherNamita Prakashan Aurangabad
Publication Year1973
Total Pages93
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Social
File Size10 MB
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