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________________ आधुनिक कहानी का परिपार्श्व / १०३ होते हैं, तो मोहन राकेश 'जख्म' में 'टूटे हुए' आदमी को मदिरा पिलाकर सांत्वना दिलाने की चेष्टा करते हैं । राजकमल चौधरी और रमेश बक्षी यौन-वासना के विभिन्न ढंग और 'उत्तेजक स्थितियों की नवीनता खोजने' के दायित्व - निर्वाह में नई कला के आयाम खोजने में संलग्न रहते हैं और इस प्रकार जाने-माने सभी कथाकार यौन कुंठाओं एवं वर्जनाओं के विभिन्न आयामों को चित्रण करने को ही मूल्य - मर्यादा और प्रतिमान समझ बैठे हैं और ईमानदारी से इसका निर्वाह भी कर रहे हैं । यह यात्रा यहीं नही समाप्त होती । १९६० के बाद जहाँ इस प्रवृत्ति के प्रति हम विद्रोह की भावना पाते हैं, वहीं कुछ ऐसे भी नए कथाकार हैं, जो इन प्रतिक्रियावादी तत्वों को लेकर ही अपनी 'सृजनशीलता' को नए आयाम देने की चेष्टा कर रहे हैं । उन्होंने जैसे अपने पिछले दशक से प्रतिक्रियावादी तत्वों को अपनी कहानियों में मुखरित करने का दायित्व स्वीकार किया है और अब वे उसी ईमानदारी से उसका निर्वाह करने की दिशा में प्रवृत्त हो रहे हैं । इस सम्बन्ध में एकदम आज के कहानीकार की एक कहानी का सन्दर्भ दिया जा सकता है, जिसमें एक पति अपनी माता या पिता ( इस समय ठीक स्मरण नहीं है ) को सीढ़ियों से ढकेलकर रक्तपात करता है, क्योंकि उसे अपनी पत्नी से संभोग करने का अवसर नहीं मिलता । उनकी सभी कहानियाँ श्रीकान्त वर्मा की भाँति जीवन के घिनौने सत्यों को खोजने में लगी हुई हैं । इसी प्रकार अन्य कुछ दूसरे कथाकार है, जो अपने पड़ोसियों, मित्रों या सम्बन्धियों के यहाँ 'सामग्री " खोजने के लिए ही जाते हैं, ताकि यौन भावना की पूर्ति हो सके । जगदीश चतुर्वेदी की कई कहानियाँ, विशेषतया 'अधखिले गुलाब', इसी प्रकार की हैं । इस कुण्ठा, वर्जना अथवा प्रतिक्रियावादी तत्वों के प्रति अतिरिक्त मोह का कारण क्या है ? इसे समझते देर नहीं लगेगी । स्वातंत्र्योत्तर काल में भारतीय जीवन की पद्धतियों में ग्रामूलचूल परिवर्तन आया है । पहले अध्याय में इस बात की ओर मैं स्पष्ट संकेत दे चुका हूँ । यहाँ केवल दो-एक बातें
SR No.010026
Book TitleAadhunik Kahani ka Pariparshva
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size18 MB
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