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१०२ / आधुनिक कहानी का परिपार्श्व
'नई' कहानी यही है । इनमें से कुछ कहानियों का उल्लेख ऊपर किया जा चुका है ।
इन कहानियों में सेक्स के छिछले - से छिछले स्तर को उठाने में भी संकोच नहीं किया गया है | लेस्बियन्स की भावना लेकर - अर्थात् एक स्त्री का दूसरी स्त्री से प्रेम करना और आपस में ही काम - भावना की तुष्टि करना – इन कहानीकारों ने रचनाएँ की । मार्कण्डेय अपनी कहानी में कथा - नायिका को बाथरूम में निरावरण कर नौकर की गोद में डालकर विभिन्न प्रतीकों एवं प्रक्रियाओं द्वारा पाठकों के मन में जुगुप्सा उत्पन्न करने की चेष्टा करते हैं । राजेन्द्र यादव ने 'प्रतीक्षा' में उसी लेस्बियन प्रवृत्ति के आधार पर दो लड़कियों को लेकर एक काफ़ी लम्बी कहानी की रचना कर पाठकों को यह समझाने का प्रयत्न किया है कि काम भावना की तुष्टि स्त्रियाँ आपस में ही कर सकती हैं और पुरुषों को स्त्रियों के सम्बन्ध में उदार होकर सचेत हो जाने की आवश्यकता है । नहीं चेतेंगे, तो विवाह संस्था का ढांचा भरभरा कर टूटते देर नहीं लगेगी -- आखिर विवाह संस्था मात्र सेक्स पर ही तो आधारित है न ! श्रीकान्त वर्मा अपनी कहानियों में जीवन का घिनौने से घिनौने सत्य खोजकर उजागर करने में संलग्न हैं । जहाँ दूसरे कहानीकार नए जीवन-सत्य को पाने और सामाजिक यथार्थ की गहराइयों को स्पष्ट करने की दिशा में निरन्तर प्रयत्नशील है, वहाँ श्रीकान्त वर्मा की सारी प्रयत्नशीलता जीवन के घिनौने सत्य को पाने तक ही सीमित है, जैसे मानव जीवन की यही पूर्णता हो ! नपुंसक या वृद्ध पतियों की युवती पत्नियों को कथानक का आधार बनाकर और फिर उसके माध्यम से होटल के वेटर, मकान के दूसरे किरायेदार या पति-मित्रों द्वारा उन युवती पत्नियों को सतीत्व - मुक्ति दिलाने की 'सजगता' तो स्वातंत्र्योत्तर काल की हर सातवीं कहानी में पाई जा सकती है । निर्मल वर्मा 'अन्तर' में एक औरत की ब्लीडिंग का चित्रण 'रसमय' ढंग से करने और पीड़ामय अनुभूति उत्पन्न करने में संलग्न