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आधुनिक कहानी का परिपार्श्व / ६६
अधिकांशतः मध्य वर्ग के विद्रूपता और कुरूपतापूर्ण जीवन का चित्रण किया है । उन्होंने अपने वर्गीय जीवन के खण्डित दर्पण में अपने चेहरे देखे हैं । निस्संदेह संसार के लगभग सभी देशों में साहित्य और कला के क्षेत्र में नेतृत्व उच्च और अब प्राजकल, मध्य वर्ग के हाथ में रहा है । वर्तमान रूस अपवाद स्वरूप है । वहाँ तो मज़दूर कवियों का आविर्भाव हो रहा है । मध्यवर्गीय लेखक या कलाकार भी मज़दूरों का, शोषितों- पीड़ितों का वर्णन करता है, या कर सकता है, किन्तु वह केवल बौद्धिक सहानुभूति होगी । यही कारण है कि इन नए कहानीलेखकों ने अपने को वर्गीय जीवन तक ही सीमित रखा है। उनकी सचाई की दाद दिए विना नहीं रहा जा सकता। उनका साहस सराह - नीय है । इन कहानीकारों में भविष्य के प्रति गहरी सम्भावनाएँ हैं । उन्होंने निकट अतीत के कहानी - लेखकों की अपेक्षा कलात्मक या शैलीगत विशेषताएँ प्रकट की हैं । चेतन - प्रवाह पद्धति से दूर का सम्बन्ध होते हुए भी उनकी कहानियों में निष्क्रियता नहीं है । उनके पात्र अपने मन से जूझते हुए हुए सामाजिक परिस्थितियों से भी जूझते हैं ।
A की नई पीढ़ी के कहानीकारों की रचनाओं से यह बात बड़ी ! स्पष्टता से लक्षित होती है कि मनुष्य एक भौतिक इकाई है । वह बाहर से सक्रिय तो रहता ही है, भीतर से भी सक्रिय रहता है । मनुष्य किसी भी क्षरण जड़ नहीं है । सामाजिक घात-प्रतिघात से मनुष्य का सम्पूर्ण व्यक्तित्व प्रतिक्रिया प्रकट करता है । ये कहानियाँ यथार्थ - प्रधान होती हैं । उनमें त्वरित गति होती है और वे काल और स्थान निरपेक्ष होती हैं । उनमें मानव-मन की ग्रंथियों को खोलने का प्रयास होता है, न कि कुंठित और दमित व्यक्तित्व का चित्रण | मानव मन की ग्रंथियों को खोलना एक प्रकार के मानसिक रेचन का उपयोग करना है । फलतः इन कहानियों का व्यक्ति विषमताओं और कुप्रवृत्तियों पीड़ित होने पर भी स्वस्थ हैं । ये रचनाएँ समाज पर करारा व्यंग्य कसती हैं और -समाज को अपनी ओर देखने के लिए बाध्य करती हैं । कहना चाहिए