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आधुनिक कहानी का परिपार्श्व / ६७.
कि मनुष्य उसमें अनेक प्रतिविम्बों के स्थान पर एक ही प्रतिवम्ब देख सके। आज का मध्यमवर्गीय कहानीकार कायर और डरपोक नहीं है; उसमें पलायन की प्रवृत्ति नहीं है । कविता में गतिरोध का प्रश्न उठाया जा सकता है । कहानी के क्षेत्र में उसका प्रश्न ही नहीं उठता । नई पीढ़ी के कहानीकारों ने जीवन की परिस्थितियों से मोर्चा लेने के लिए अत्यन्त त्वरित गति से पैंतरा बदला, पिटेपिटाए विषय छोड़े, पिटीपिटाई टेकनीक छोड़ी और गतिरोध को पास फटकने तक का अवसर प्रदान न किया । समूचे कहानी - साहित्य में, व्यक्तिगत रूप में कुछ कहानीकारों को छोड़कर, एक सूक्ष्म सामाजिक यथार्थ - बोध है, जो उसकी अपनी परम्परा का नवीनतम संस्करण है । आज की आधुनिकता से ओतप्रोत लेखक शंकालु होने के साथ यथार्थोन्मुख होगा ही । विवश होकर उसे जीवन-सत्य स्वीकार करना ही पड़ता है, क्योंकि जीवन और व्यक्ति में इतना अधिक नैकट्य आ गया है कि उसकी लपटों से मुर्दे ही बच सकते हैं | निस्सन्देह हमारे तरुण कहानीकार मुर्दे नहीं हैं । वे गतिशील हैं, विभिन्न दिशाओं की ओर अग्रसर हैं । यह एक महत्वपूर्ण बात है । • हम अपने को कल्याण राज्य का नागरिक कहते हैं । हम गणतंत्रात्मक समाजवादी व्यवस्था स्थापित करना चाहते हैं । अतः भीतर और बाहर के सभी शत्रुओं पर कड़ी निगाह रखनी आवश्यक है । अपने देश और अपने चारों ओर के निकटवर्ती जीवन पर दृष्टि रखते हुए, 'भारतीयपन ' पर ध्यान रखते हुए, हमारे लेखकों को संसार के अन्य मूर्द्धन्य लेखकों के साथ भी क़दम-से-क़दम मिलाकर चलना है ।
सन्तोष का विषय है कि सर्वथा नए कथाकारों की एक नई परम्परा बन रही है, जो अपनी कला के इस गरिमापूर्ण उत्तरदायित्व के प्रति सचेत हैं । यह देखकर आश्चर्य होता है कि सामाजिक दायित्व - बोध और जीवन-यथार्थ के उद्घाटन का दावा करने वाले लेखक १६५० के पश्चात् दस वर्ष के अन्तर्गत ही आत्म-परक विश्लेषण - धारा को आत्मसात कर वैयक्तिक चेतना को चित्रित करने लगे, जिसे पहले वे