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________________ ६६ / आधुनिक कहानी का परिपार्श्व आज के जीवन की वास्तविकता की जटिलता को आत्मसात् करना सरल नहीं है । फलतः असन्तोष और विक्षोभ उत्पन्न होना भी प्राश्चर्यजनक नहीं । किन्तु निराशा और अवसाद के क्षणों में सशक्त प्रस्थावान् स्वर परिलक्षित होता है, इस तथ्य को भी अस्वीकारा नहीं जा सकता । सूक्ष्मातिसूक्ष्म विन्दु पर आधारित एवं विकसित साहित्योपलब्धि में मानवता झाँकती दृष्टिगोचर होती है । इसके अतिरिक्त स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद के राष्ट्रीय जीवन की विषमताएँ और अभिशाप तथा अंसगतियाँ तो सर्वविदित ही हैं । द्वितीय महायुद्धोत्तरकालीन अन्तर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय जीवन की परिस्थितियों से कहानी ने नया स्वर ग्रहण किया, तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है, क्योंकि, जैसा पहले कहा जा चुका है, कहानी जीवन को आगे रखकर चलती है । उसके लिए नई-नई दिशाएँ खुली हैं । उसका एक निश्चित लक्ष्य है - स्वस्थ समाज में स्वस्थ व्यक्ति । उसमें कुण्ठा, घुटन, रोमांस आदि के प्रति आसक्ति विल्कुल नहीं है, यह तो नहीं कहा जा सकता । इन बातों का साहित्य में बिल्कुल अस्तित्व न रहा हो या आगे नहीं रहेगा, यह भी नहीं कहा जा सकता । मनुष्य है तो कुंठाएँ और रोमांस भी रहेगा । किन्तु व्यापक दृष्टि से देखने पर लगता है कि आज का कहानीकार भूख और सेक्स के संघर्ष, मानव जीवन को सुखी बनाने के मार्ग में बाधाओं को दूर करने, जीवन की विषम परिधियों को तोड़ने, सामाजिक और राजनीतिक जीवन में झूठ और फ़रेब दूर करने आदि की दृष्टि से व्यंग्यास्त्र धारण किए हुए नए कवि की अपेक्षा साहस और पौरुष का अधिक परिचय दे रहा है । आज के कहानीकार ने बदलते मूल्य पहचानने में पूर्ण सक्षमता प्रकट की है । वह जीवन को भौतिक दृष्टि से सुखी बनाने में विश्वास तो रखता है, किन्तु उससे भी अधिक वह मनुष्य को मानसिक और आत्मिक दृष्टि से तुष्ट होते हुए देखना चाहता है । अन्तर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय परिस्थितियों के फलस्वरूप टुकड़े-टुकड़े हुए जीवन दर्पण को वह इस प्रकार जोड़ना चाहता है •
SR No.010026
Book TitleAadhunik Kahani ka Pariparshva
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size18 MB
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