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आधुनिक कहानी का परिपार्श्व / ३१
मानव मन को प्रभावित एवं अभिभूत करती रही है । विषयगत और शैलीगत परिवर्तनों के बावजूद साहित्य और कला ने अभी तक अपना यह मौलिक रूप विस्मृत नहीं किया । आधुनिक वैज्ञानिक और टेकनोलॉजिकाल प्रगति के युग में भी उसमें कोई प्रकृत्या परिवर्तन होता दृष्टिगोचर नहीं हो रहा । लेखक या कलाकार का युग-बोध, भावबोध, संवेदनशीलता उसके चेतन जीवन और अवचेतन मन को संचालित करती रहती है । तदनुकूल उसकी शब्दावली, भाषा, शैली आदि में परिवर्तन होना अनिवार्य हो जाता है । ईश्वर के रचना- विधान में यह बड़ी अद्भुत बात दृष्टिगोचर होती है कि एक व्यक्ति की भाव-सृष्टि दूसरे व्यक्ति का अनुभूत विषय बन जाती है । लेखक की वारणी प्रेरणाजन्य होती है | प्रेरणा - जन्य होने के कारण लेखक या कलाकार की सर्जनात्मक प्रतिभा का अन्तिम सम्बन्ध जीवन से स्थापित हो ही जाता है । वैसे यूरोप और भारत में ऐसे विचारक भी रहे हैं जिन्होंने केवल अभिव्यंजनागत विधान को ही महत्व दिया, किन्तु संसार का साहित्य उनके मत की सत्यता प्रमाणित नहीं करता । प्रेम, भय, घृणा आदि विश्व-सहित्य को उद्वेलित करते रहे हैं; साहित्य में मनुष्य का 'रावरणत्व' और 'रामत्व' दोनों अलग-अलग रूपों में या संघर्ष के रूप में चित्रित होते रहे हैं । मन के इस संघर्ष के अतिरिक्त आज विज्ञान और औद्योगीकरण - जन्य विषमताओं से भी उसका संघर्ष है । इतना ही नहीं, वह विज्ञान के नवीनतम अविष्कारों के प्रकाश में अपने जीवन और अपने तन को मापने का अभूतपूर्व प्रयास कर रहा है। इस सबका प्रभाव उसके साहित्य, उसकी कला, उसकी शैली आदि पर पड़ रहा है । साथ ही, वह नवीन मनोवैज्ञानिक, सामाजिक, नैतिक, आर्थिक, राजनीतिक आदि विभिन्न समस्याओं से जूझ रहा है । आधुनिकता का दावा करने वाला कोई भी चेतन लेखक या कलाकार इन बातों से विमुख नहीं रह सकता । विमुख रहना उसके लिए आत्महत्या के बराबर होगा । कथाकार को तो इस ओर और भी सचेष्ट होना है । मानव