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________________ आधुनिक कहानी का परिपार्श्व/८६ हैं । रचना-विधान की दृष्टि से निस्सन्देह उसकी अपनी सीमाएँ हैं और वह जीवन को उसकी समग्रता के साथ अपने में समेट लेने में भी अक्षम रहती हैं, तो भी जीवन के जिस बिन्दु पर कहानी की दृष्टि पड़ती है, वह बड़ी गहराई के साथ उसे माप लेती है । वह जीवन से अपने ढंग से जूझती है , किन्तु जूझती अवश्य है । हिन्दी का ही नहीं संसार का कहानी-साहित्य इसकी पुष्टि करता है। और, आज का जीवन तो इतना विशाल, बहुमुखी और दुरूह एवं जटिल हो गया है कि उसे उसकी समग्रता के साथ महाकाव्यकार की भाँति देखना असम्भव है । आज तो उसे एक साथ न देखकर विभिन्न पार्यों और कोणों से ही देखा जा सकता है । जीवन-गत सत्य को आंशिक रुप में क्रमश: अनुभूत कर उसके पूर्णत्व तक पहुंचा जा सकता है । लेखक यदि जीवन-गत सत्य को आंशिक रुप में ही प्राप्त कर ले तो उसे सफल कहा जाएगा। इस प्रकार की आँशिक अभिव्यक्ति के लिए कहानी उपयुक्त माध्यम है। कहानियों में व्यक्त जीवन-खण्डों को मिलाकर देखने से जीवन का सच्चा ‘पैटर्न' दिखाई दे सकता है । आज़ का कहानी-लेखक अपनी कला की प्रकृति के अनुसार नव-युगीन संवेदनाओं को प्राप्त करते हुए, नवीन समस्याओं की चुनौती स्वीकारते हुए नित नवीन से जूझ रहा है और जो उसके लिए नितान्त स्वाभाविक है । वह कला की उत्कृष्टता की ओर यदि सचेत है, तो जीवन-सत्य को गहराई से देखने, जीवन के प्रति अपनी निष्ठा व्यक्त करने के प्रति भी सतत प्रयत्नशील है । त्रुटियों के रहते हुए भी उसमें शक्ति हैउपर उल्लिखित कहानियाँ या आज लिखी जाने वाली दूसरी कहानियाँ इसका प्रमाण हैं। मात्र लिखने की लत रखने वाले कहानी-लेखकों को छोड़कर अथवा संसार से वीतराग हुए लेखकों को छोड़कर अथवा विगत शताब्दी के 'कलार्थे कला' वाले सिद्धान्त में विश्वास रखने वाले कलाकारों को छोड़कर, अन्य कोई जागरूक और सचेत लेखक जीवन-संग्राम से अलग
SR No.010026
Book TitleAadhunik Kahani ka Pariparshva
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size18 MB
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