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७४/आधुनिक कहानी का परिपार्श्व वह अतृप्त मन से इन अपूर्ण इच्छाओं को नियंत्रित करने का प्रयत्न करता है। ये अतृप्त इच्छाएँ मनुष्य के अवचेतन मन में जाकर एकत्रित होती रहती हैं। समय पाकर ये दमित-शमित भावनाएँ फूटती हैं, जो भावी जीवन की दिशा ही नहीं निर्धारित करतीं, वरन् मनुष्य उनसे जीवन मैं विचित्र व्यवहार करने लगता है, जिनका कारण वह चाहकर भी समझ नहीं पाता। फ्रॉयड के अनुसार मनुष्य की प्रत्येक प्रक्रिया के मूल में उनकी वासनात्मक भावना ही रहती है। अतृप्त आकांक्षाओं और अपूर्ण वासना को मनुष्य सामाजिक भावना के भय से लज्जावश प्रकट नहीं करता क्योंकि इससे उसे अपना सम्मान छिन जाने की आशंका रहती है । फलत: कठोर सामाजिक बन्धनों के कारण उनका उदात्तीकरण हो जाता है । बचपन में वासना की भावना मातृरति ( Oedipus Complex ) के रूप में प्रकट होती है अर्थात् लड़का अपनी माँ से प्रेम और पिता से घणा करता है। लड़कियाँ इसके विपरीत आचरण करती हैं (Electra Complex) । इसके विपरीत ऐडलर ने यह प्रतिपादित किया कि मनुष्य हीन-ग्रंथियों का शिकार होता है, जिन पर विजय पाने के लिए और दूसरों पर अपनी विशेषताओं का प्रभुत्व जमाने के लिए वह भाँति-भाँति प्रकार के कार्य करता है। इसमें अच्छे-बुरे का वह विवेक खो देता है और किसी-न-किसी प्रकार दूसरों पर अपना रोब डालने के लिए प्रयत्नशील रहता है। ऐडलर की धारणा है कि खिलाड़ी, अभिनेता, कलाकार तथा नेता आदि सभी अपने-अपने क्षेत्रों में इसी भावना का शिकार होकर आगे बढ़ते हैं । युग ने मानव व्यक्तित्व के दो विभाजन किए-अन्तर्मुखी व्यक्तित्व वाला व्यक्ति और बहिर्मुखी व्यक्तित्व वाला व्यक्ति । उसके अनुसार अन्तर्मुखी व्यक्तित्व वाला व्यक्ति अपने में ही सीमित रहता है, दूसरों से मिलना-जुलना पसन्द नहीं करता और साहित्य में इसीलिए जब वह आता है, तो कुछ ही पात्रों से अपना काम चला लेता है, क्योंकि व्यापक परिधि समेट सकना उसके लिए संभव नहीं होता। इसके विपरीत बहिर्मुखी व्यक्तित्व वाला व्यक्ति सामाजिक