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________________ प्रावुनिक कहानी का परिपार्श्व/७३ यह धारा पश्चिमी मनोवैज्ञानिकों एवं विद्वानों, विशेषतया फ़ॉयड, ऐडलर और युंग से अत्यधिक प्रभावित रही है । प्रथम महायुद्ध के पश्चात् सामाजिक स्वस्थ दृष्टिकोण का वड़ा विघटन होने लगा था और पश्चिमी देशों में युद्ध की भयंकर गति से एक विचित्र प्रकार का भय, निराशा एवं कुण्ठा व्याप्त होने लगी थी जिसने जीवन से पलायन करने की प्रवृत्ति उत्पन्न की। यह भावना साहित्य में भी आई और कलाकार जीवन के यथार्थ को अथवा जीवन-संघर्ष से जूझते रहने की जिजीविषा से कतराने लगा, क्योंकि समस्याएँ दिन-प्रतिदिन जटिल होती जा रही थीं। विकृतियाँ एवं विषमताएं बढ़ रही थीं तथा छोटेछोटे दायरों में अनेक अन्तविरोध उत्पन्न होने लगे थे--इसका उसके पास न तो कोई उत्तर था, न कोई समाधान, और मजे की बात तो यह है कि इस ओर वह उन्मुख भी नहीं होना चाहता था। ऐसी स्थिति में अस्वस्थ मनोविकारों एवं मानस के अन्तस के उद्घाटन में अधिक रुचि प्रकट की जाने लगी और फलस्वरूप विकारग्रस्त, पंगु एवं गतिहीन पात्रों का निर्माण हुआ, जिसमें इन तथाकथित कलाकारों ने केवल ह्रासोन्मुख प्रवृत्तियों के ही दर्शन किए। अपने को समाज का जागरूक प्रहरी कहने वाले इन बौद्धिक कलाकारों ने यहीं बात समाप्त नहीं की, वरन् एक कदम आगे बढ़कर व्यक्ति के अहं को ही एकमात्र महत्वपूर्ण वस्तु समझना प्रारम्भ कर दिया और उसे बढ़ावा देने लगे। आत्मपरकता की चरम भावना आगे बढ़कर एक ऐसे बिन्दु पर पहुंच जाती है जहाँ व्यक्ति को अपने अहं के अतिरिक्त कुछ ओर सुझाई नहीं देता और वह पूरे समाज को तहस-नहस कर देने को ही 'विद्रोह समझने लगता है। बस विचारधारा को, जैसा कि मैंने ऊपर कहा,फ्रॉयड, ऐडलर और युंग ने सुनिश्चित स्वरूप प्रदान किया। फ्रॉयड के अनुसार मनुष्य में असंख्य इच्छाएँ एवं कामनाएँ होती हैं, जो इन या उन कारणों से स्वभावतः पूर्ण नहीं हो पातीं और उसमें अपूर्णता का जन्म होता है।
SR No.010026
Book TitleAadhunik Kahani ka Pariparshva
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size18 MB
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