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________________ '७२/आधुनिक कहानी का परिपार्श्व थे और यहाँ की परम्पराओं को पूर्णतया विस्मृत नहीं करना चाहते थे । उनकी धारणा थी, जब तक श्रम करने वाले को ही समाज में उत्पादन के साधनों पर अधिकार नहीं मिलेगा, इन्सान और उसकी दुनिया निरंतर ऐसे ही भटकती रहेगी। उसे कहीं भी चैन नहीं मिलेगा। मैं हारा नहीं हूँ, क्योंकि एक बहुत बड़ा सत्य मेरे सामने आ गया है । सारे दु:खों की जड़ अधिकार है । अधिकार एक धोखा है जो मनुष्य को खाए जा रहा है । उनकी कला का मूलाधार यही भावना है, जिसे उन्होंने अपनी कई कहानियों में सफलतापूर्वक उजागर किया है । 'गदल' उनकी अत्यन्त लोकप्रिय रचना है। रांगेय राघव भी जीवन के कठोर यथार्थ के भोक्ता थे और विषम परिस्थितियों में जिए थे। उनका जीवन निरंतर संघर्षशील था और वे बड़े कर्मठ व्यक्ति थे। संपूर्ण जिजीविषा की भावना ने उन्हें आस्था और संकल्प दिया था जिससे वे जीवन-पर्यन्त विषमताओं से जुझते रहे । इससे उन्हें अनेक सत्य मिले थे, जिसे उन्होंने बड़े यथार्थ ढंग से अपनी कहानियों में अभिव्यक्त किया है । उनकी कहानियों में ठोस कथानक मिलता है, जिसके रेशे यथार्थ जीवन से संतुलित किए गए हैं । उन्हें उन्होंने बड़ी स्वाभाविकता से प्रस्तुत किया है। उन्होंने अनेक सजीव पात्रों का सर्जन किया है जो अधिकांशतः मध्य वर्ग के हैं और उनका पूरा-पूरा प्रतिनिधित्व करते हैं । अहिन्दी-भाषा-भाषी होकर भी उनकी भाषा यथार्थ है और उसमें प्रवाह, सजीवता तथा रवानी के गुणों की उन्होंने पूर्ण रक्षा की है। [ २ ] प्रारम्भ में जिन दो धाराओं का मैंने उल्लेख किया था, उसमें से एक धारा की विशेषताओं और उसके प्रमुख लेखकों का वर्णन ऊपर किया जा चुका है। दूसरी धारा आत्म-परक विश्लेषण की है । जैनेन्द्र कुमार, 'अज्ञेय' तथा इलाचन्द्र जोशी उसके प्रमुख उन्नायकों में रहे हैं।
SR No.010026
Book TitleAadhunik Kahani ka Pariparshva
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size18 MB
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