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आधुनिक कहानी का परिपार्श्व / ६६
साधन बनना प्रगतिशील साहित्य का ध्येय है । काल्पनिक सुखों की अनुभूति के भ्रमजाल को दूर कर मानवता की भौतिक और मानसिक समृद्धि के रचनात्मक कार्य लिए प्रेरणा देना साहित्य का मार्ग है । कहना न होगा कि यशपाल की कहानी कला का मूल आधार यही विचारधारा है ।'
उनकी कहानियों के कथानक वर्ग-वैषम्य, आर्थिक विषमता, असमानता और प्रेम पर ही आधारित हैं । उनमें मनोवैज्ञानिक चित्रण या मानसिक ऊहा-पोहों के चित्ररण के प्रति उनका ग्राग्रह उतना लक्षित नहीं होता, जितना स्थूल कथानक देकर किसी वैचारिक सत्य या यथार्थ स्थिति को स्पष्ट करने के प्रति । उनकी कहानियों में समाजवादी यथार्थवाद ( Socialist Realism ) का रूप मिलता है और उन्होंने जीवन के यथार्थ से पात्रों को लेकर उसका स्थानापन्न बना देने का सफल प्रयत्न किया है । उनके कथोपकथनों में भी बड़ी सजीवता रहती है और उनके माध्यम से उन्होंने पूँजीवादी बुर्जुआ मनोवृत्ति और सामाजिक विकृतियों एवं विसंगतियों पर कठोर मर्मान्तिक प्रहार किए हैं जिनमें उनका तीव्र आक्रोश प्रकट हुआ है । यशपाल ने वातावरण- प्रधान कहानियाँ और चरित्र- प्रधान कहानियाँ भी लिखी हैं, पर उन कहानियों में भी उनका आग्रह समाजवादी यथार्थवाद के चित्रण और मार्क्सवादी दर्शन की प्रतिष्ठापना के प्रति ही अधिक रहा है । यशपाल की भाषा भी यथार्थं गुणों को लेकर विकसित हुई है, जिसमें बड़ा संजीदगी है ।
प्रवाह, रवानी और
यशपाल के सन्दर्भ में यह उल्लेख करना आवश्यक है कि जिस प्रगतिशील दृष्टिकोण, सामाजिक दायित्व के निर्वाह की भावना और सामाजिक संचेतना के साथ युग-बोध को चित्रित करने के माध्यम से 'नई ज़मीन तोड़ने की बात 'नई' कहानी में उठाई जाती है, उस परम्परा का सूत्रपात वास्तव में प्रेमचन्द ने और विकास यशपाल ने किया, 'नई ' कहानी ने नहीं । प्रेमचन्द और यशपाल की परम्परा से पूर्णतया प्रभावित
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