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आधुनिक कहानी का परिपार्श्व/६७
मध्यवर्गीय जीवन के पात्रों को ही अपनी कहानियों में लिया है। यह वर्ग ऐसा था, जो मार्क्सवादी विचारधारा से प्रभावित था और बौद्धिक था। उस समय भारत में ब्रिटिश साम्राज्यवाद फैला हुआ था, जिसका प्रथम और अंतिम उद्देश्य ही शोषण था। वे विदेशों से आए थे और यहाँ की धन-सम्पदा को अधिक-से-अधिक लूट कर अपने देश ले जाना चाहते थे। थॉम्पसन और गैरेट ने अपने प्रसिद्ध इतिहास-ग्रंथ में भारत की संज्ञा उस पैगोडा वक्ष से दी है, जो उस समय तक हिलाया गया, जब तक कि वह पूर्णतया नष्ट नहीं हो गया । यह पूंजीवाद का बहुत नग्न नृत्य था और इस बूर्जुआ मनोवृत्ति से भारत में दयनीय स्थिति उत्पन्न हो गई थी। ज़मींदार इन पूंजीपतियों के पिट्ठ थे और उन्हें शोषण करने की खुली छट थी। इससे वर्ग-वैषम्य, असमानता उत्पन्न हो गई थी और वर्गों का कृत्रिम विभाजन हो गया था । वितरण पर कुछ थोड़े-से मुट्ठी भर लोगों का अधिकार था और सारे उद्योग-व्यवसाय पूंजीपतियों के हाथों में थे, जिससे सारी अर्थ-व्यवस्था विशृंखलित हो गई थी। इससे निर्धनता का अभिशाप बहुत गहन रूप में सर्वत्र व्याप्त हो गया था। इस स्थिति के प्रति सचेत एक बौद्धिक वर्ग था, जिसमें विद्रोह की भावना व्याप्त थी और जो क्रान्ति का पक्षपाती था ! यही वर्ग उसके प्रभाव में काल था, जब भारत में मार्स के विचार लोकप्रिय होने लगे थे। यह पाया और पंजीपतियों के विरुद्ध उसने एक नई दिशा ग्रहण की। साहित्य में इस विचारधारा को अर्थवत्ता प्रदान करने वालों में यशपाल प्रमुख हैं।
यशपाल की कई कहानियों में नारी को प्रधानता मिली है। उनकी धारणा है कि पूँजीवादी समाज में नारी भोग-विलास की सामग्री समझी जाती है, जिस पर पुरुष का पूरा अधिकार होता है और उसकी अपनी कोई स्वतन्त्र सत्ता, मर्यादा या गौरव शेष नहीं रहा जाता । उसका वास्तविक अस्तित्व किसी की पुत्री, श्रीमती और माता बनने में है, जहाँ वहअपना निजत्व खो देती है और वह विलास का साधन मात्र रह जाती