________________
६६ अाधुनिक कहानी का परिपार्श्व उनकी अधिकांश कहानियों में यह जीवन-दर्शन ठीक तरह खप नहीं पाया । फलत: उनकी अनेक रचनात्रों और उनके जीवन-दर्शन में एक प्रकार का वैचारिक अलगाव पाया जाता है। उनमें 'किस्सा' कहने की प्रतिभा खूब है। उनकी कहानियों में ठोस कथानक पाया जाता है और उसका संगुफन वे बड़े ही कुशल ढंग से करते हैं, जिससे कहानियों में नाटकीयता की प्रवृत्ति अधिक आ जाती है। कथा-संगठन की दृष्टि से भगवती बाबू ने रोमांटिक यथार्थवाद का आश्रय लेते हुए उसे प्रभावपूर्ण ढंग से प्रस्तुत करने में सिद्धहस्तता प्रकट की है। उनकी अनेक कहानियाँ वर्णनात्मक शैली में हैं जिनमें प्रेमचन्द की कहानियों की भाँति स्थूलत्व है। लेखक मनोवैज्ञानिक गहराइयों में नहीं जाता। घटनाओं और पात्रों को ज्यादा नहीं कुरेदता; उनके सूक्ष्म पक्ष नहीं उभारता । वह केवल मोटी-मोटी बातों और वाह्य पक्ष का चित्रण करके रह जाता है । इससे उनकी अधिकांश कहानियाँ यदि एकांगी लगें, तो विस्मय नहीं होना चाहिए, क्योंकि क़िस्सागोई और ठोस कथानक देने की परम्परा से मोह होने के कारण वर्मा जी ने मनोवैज्ञानिक अन्तर्द्वन्द्व और ऊहा-पोहों का सूक्ष्म चित्रण करने की ओर अधिक ध्यान नहीं . दिया।
यशपाल मार्क्सवादी या प्रगतिवादी कहानी लेखक हैं और उन्होंने जीवन के विविध संघर्षों का सजीव, किन्तु वर्गगत, चित्रण किया है। जीवन की विविध परिस्थितियों का चित्रण भी, ऐसा प्रतीत होता है, उन्होंने अपने व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर किया है। मानव-भावनाओं से वे भलीभाँति परिचित हैं और उनका सूक्ष्म विश्लेषण करना उनकी विशेषता है । 'वो दुनिया', 'ज्ञानदान', 'अभिशप्त', 'पिंजरे की उड़ान', 'तर्क का तूफ़ान', 'चित्र का शीर्षक', 'फूलों का कुर्ता' तथा 'तुमने क्यों कहा था । मैं सुंदर हूं' आदि उनकी प्रसिद्ध रचनाएँ हैं ।
जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है, यशपाल की विचारधारा समाज‘वादी है । उन पर मार्क्सवाद का गहरा प्रभाव पड़ा है । उन्होंने मुख्यतया