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६२/अाधुनिक कहानी का परिपार्श्व हैं । वर्माजी पर आधुनिक वैज्ञानिक युग द्वारा उत्पन्न बौद्धिकता और फलतः असन्तोष का प्रभाव है। उनकी कहानियाँ पाठकों के मन पर स्थायी प्रभाव छोड़ जाने में सफल होती हैं । 'दो बाँके' तथा 'इंस्टालमेन्ट' उनकी कहानियों के प्रसिद्ध संग्रह हैं ।
वास्तव में सामाजिक चेतना और जीवनगत संघर्ष एवं विद्रोह ने भगवती बाबू को कथा-साहित्य की ओर खींचा और इसके लिए उन्नीसवीं शताब्दी उत्तरार्द्ध से चली आ रही सुदीर्घ और प्रेमचन्द द्वारा पुष्ट परम्परा उन्हें प्राप्त थी । इसीलिए उनकी कहानियों में सामाजिक और राजनीतिक चेतना उभरी है। उनमें व्यक्ति और समाज के परस्पर संघर्ष की भावना निरंतर विद्यमान रहती है। प्रेमचन्द और भगवती बाबू की जीवनियों का अध्ययन करने पर यह निष्कर्ष निकलता है कि इन दोनों कलाकारों को जीवन के साथ घोर संघर्ष करना पड़ा। उन्होंने अपनी कुरूपता के साथ-साथ समाज की कुरूपता भी देखी । जीवित रहने की प्रेरणा दोनों में बनी रही। दोनों ने बहुत से सपने देखे और मिटाए भी। अभावग्रस्त जीवन व्यतीत करते हुए ही दोनों कलाकारों ने साहित्य में प्रवेश किया। किन्तु प्रेमचन्द तो अपने व्यक्तिगत जीवन की कटुता को अपने समाज-दर्शन से पृथक रखने में समर्थ हो सके थे, भगवती बाबू ऐसा नहीं कर सके । उन्होंने अपने सपने मिटाए; अपनी आँखों से मस्ती का पागलपन मिटाया और अनास्था से भरा व्यंग्य उनकी आँखों में झलकने लगा। कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि उनकी दृष्टि में व्यंग्य ही जीवन का एकमात्र सत्य है। काल और परिस्थति के झोंकों में लगातार डूबते-उतराते रहने कारण उन्हें कार्य-कारण, क्रियाप्रतिक्रिया आदि तत्वों का निरीक्षण करने की आदत पड़ गई है । भगवती बाबू में जीवन-शक्ति का अभाव तो नहीं है, किन्तु जीवन के संघर्ष ने उनमें संशय, अविश्वास और आत्मतुष्टि की भावना उत्पन्न कर दी है। नियंता के आश्रित रहने के कारण वे अपना स्वतन्त्र अस्तित्व नहीं मानते। उनकी मान्यता है जो मैं करता हूँ, वह करने को विवश हूँ; बाध्य