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आधुनिक कहानी का परिपार्श्व/५७ घटनाओं और प्रसंगों की ओर संकेत मात्र करते चलते हैं। साधारण पाठकों के लिए उनकी कहानियाँ कुछ दुरुह अवश्य हो जाती हैं । चित्रोपमता, स्वाभाविक्ता, व्यावहारिकता, भाषा का सौन्दर्य आदि बातें उनकी कला की विशेषताएँ हैं । 'खाली बोतल', 'हिलोर', 'पुष्करिणी' आदि उनकी प्रसिद्ध रचनाएँ हैं।
बाजपेयी जी की मूल विचारधारा व्यक्तिवादी है, पर उनमें धोरआत्मपरकता नहीं है । उन्होंने जीवन के यथार्थ को निकट से देखा है और उस पर अपने ढंग से सोचा-समझा और विचार किया है। इस यथार्थ के मूल कारणों को खोज निकालने की प्रक्रिया में उन्होंने उसकी कटुता एवं भयंकरता का पात्रों पर पड़ने वाले प्रभावों का सूक्ष्म विश्लेषण करने की भी चेष्टा की है। उनकी कहानियाँ स्थूलता से सूक्ष्मता की ओर बढ़ी हैं और उन्होंने जीवन के यथार्थ परिवेश में सामाजिक विसंगतियों के बीच बनने-बिगड़ने वाले मानव-व्यक्तित्व और उसकी विभिन्न भावधाराओं तथा मनःस्थितियों को मनोवैज्ञानिक आधार पर चित्रित किया है और इसमें उन्हें सफलता भी मिली है। इस प्रकार बाजपेयी जी की कहानी-कला की मूल विचारधारा भी सुधारवादी एवं आदर्श की प्रतिष्ठा करना है, यद्यपि इसे उन्होंने थोड़े भिन्न ढंग से सम्पादित करने का प्रयास किया है । जीवन के कठोर यथार्थ से परिचित करा कर सामाजिक विकृतियों के प्रति पाठकों को सचेत करने के लिए उन्होंने उपदेशक का मुखौटा नहीं लगाया, वरन् एक तटस्थ एवं निर्वैयक्तिक कलाकार की भाँति सूक्ष्म-से-सुक्ष्म बातों को प्रस्तुत भर किया है । यद्यपि प्रारम्भ में उनमें प्रेमचन्द की परम्परा से प्रभावित होकर आदर्शवादी समाधान प्रस्तुत करने की प्रवृत्ति थी, पर शीघ्र ही उन्होंने कला का वास्तविक रूप पा 'लिया भीर मनोवैज्ञानिक आधार पर सहज-स्वाभाविक कहानियाँ लिखना प्रारम्भ कर दिया, जो उनकी सफल कहानियाँ हैं।
बाजपेयी जी ने मुख्य रूप से मध्यवर्गीय जीवन से ही अपनी कहानियों के कथानक चुने हैं और व्यक्ति तथा समाज और उनकी व्यक्तिगत