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________________ .६ / प्राधुनिक कहानी का परिपार्श्व नई कहानी के सन्दर्भ में यहाँ एक बात का उल्लेख करना 'आवश्यक है कि 'उग्र' पर प्राय: अति यथार्थवादी होने का आरोप -लगाकर प्रकृतिवादी ( Naturalist) होने तक का फ़तवा दे दिया गया था। उनका साहित्य भी 'घासलेटी' नाम से पुकारा गया । स्वातंत्र्योत्तरकाल में नई कहानी के दावेदारों ने परम्परा से विद्रोह 1 कर, नई दिशा और भावभूमि ग्रहण कर कहानी को अभिनव अर्थवत्ता देने का विश्वास दिलाने का प्रयास किया है पर खेदजनक बात यह है कि इस स्वातंत्र्योत्तर काल में भी 'उग्र' की ही शैली में अनगिनत कहानियाँ लिखी गई हैं, जिनमें 'घासलेटीपन' और 'उच्छृङ्खलता' है तथा असयंमित चित्रण है । इस सम्बन्ध में राजेन्द्र यादव की 'प्रतीक्षा' तथा 'एक कही हुई कहानी' निर्मल वर्मा की 'अन्तर', श्रीकान्त वर्मा की 'शवयात्रा', शैलेश मटियानी की 'दो दुःखों का एक सुख', मार्कण्डेय की 'पक्षाघात', मोहन राकेश की 'सेफ्टीपिन' और कमलेश्वर की 'खोयी हुई दिशाएं' कुछ ऐसी ही कहानियाँ हैं जिन्हें 'उग्र' की कहानियों की शैली से अलग करके नहीं देखा जा सकता । इसमें कोई सन्देह नहीं कि इन सभी कहानियों में जीवन का यथार्थ ही चित्रित हुआ है, पर इन या उन कारणों से ( जिन्हें केवल लेखक जानता है, है. पाठक नहीं ) उन पर यथार्थ का गाढ़ा और अतिरंजित मुलम्मा चढ़ाने की चेष्टा की गई है, जो सीमा का इतना अतिक्रमण कर जाती हैं कि उनमें कला का कोई सौन्दर्यबोध रह ही नहीं जाता । कहानी के लिए सौन्दर्य-बोध उतना ही आवश्यक है, जितना कि यथार्थ युगबोध | दोनों मिलकर किसी कहानी को प्रभावशाली ही नहीं बनाते, वरन् श्रेष्ठ भी बनाते हैं । भगवतीप्रसाद वाजपेयी मनोविज्ञान के आधार पर असाधारण सामाजिक परिस्थितियों के बीच पात्रों का सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करते हैं । उनकी कहानियों में कथानक नाममात्र के लिए होता है । वे 1
SR No.010026
Book TitleAadhunik Kahani ka Pariparshva
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size18 MB
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