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________________ ५४/आधुनिक कहानी का परिपार्श्व द्वारा इस देश का शोपण ही नहीं हो रहा था, वरन् इस प्राचीन देश की सभ्यता एवं संस्कृति पर भी कठोर प्रहार हो रहे थे, जिससे यहाँ की गौरवशाली परम्पराएँ खण्डित हो रही थीं और मूल्यों के प्रतिमान टूट रहे थे । तथाकथित सभ्य सफ़ेदपोश समाज में अनैतिकता, उच्छृखंलता और अशोभन स्थितियाँ, मदिरापान और फैशनपरस्ती के नाम पर नारी की दुर्गति, पुरुष वर्ग की वासना और नारी को विवशता एवं आर्थिक परतन्त्रता आदि ऐसे नए सूत्र थे जो तत्कालीन परिवेश में उभर रहे थे और भारतीय समाज के परम्परागत रूप के लिए एक ज़बर्दस्त चुनौती के रूप में थे । इन विकृतियों को ही 'उग्र' ने अपनी कहानियों का आधार बनाया और पूर्ण यथार्थता के साथ प्रस्तुत करने करने की चेष्टा की । हालाँकि यह यथार्यता कहीं-कहीं इतनी गहरी या अतिरंजित हो गई है कि उसे प्रकृतिवाद (Naturalism) की सीमा के अन्तर्गत रखा जा सकता है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि 'उग्र' का उद्देश्य स्पष्टतया सुधारवाद ही था और उसमें कहीं दुराव-छिपाव नहीं था । उनका उद्देश्य एक ऐसे समाज की स्थापना करना था, जिसमें नारी का उचित सम्मान हो, वह आर्थिक रुप से परतन्त्र न हो, पुरुष की वासना और कुचक्रों का शिकार न हो, अनैतिकता या मूल्यों के विघटन का प्रसार न हो और फैशनपरस्ती या पाश्चात्य प्रभाव की लहर में परम्परामों का हनन न हो। इसके लिए कदाचित् वे यह आवश्यक समझते थे कि इन कुरीतियों एवं विकृतियों को यथार्थ का गाढ़ा रंग चढ़ा कर प्रस्तुत किया जाय, जिससे पाठकों की आँखें खुल जाएँ और वे सजग रहें । पर इस प्रक्रिया में प्रायः वे लेखकीय सीमा का अतिक्रमण कर गए हैं और उनका चित्रण अमर्यादित और असंयमित सा प्रतीत होता है। मेरा विचार है कि लेखक समाज का जागरूक प्रहरी होता है और उसका यह दायित्व है कि वह विषमताओं, कुरूपताओं एवं सामाजिक विसंगतियों की ओर पाठकों का ध्यान आकर्षित कर उनका मार्ग-प्रर्शशन करे। पर कला का एक सौन्दर्य-बोध होता है,
SR No.010026
Book TitleAadhunik Kahani ka Pariparshva
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size18 MB
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