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५२, आधुनिक कहानी का परिपार्श्व
कहानियों में कोई शिल्प-प्रयोग नहीं किया है और न शिल्प-चमत्कार के प्रति उनका कोई विशेष आग्रह ही है । शिल्प की दृष्टि से उनकी कहानियों के दो वर्ग हो सकते हैं । एक वर्ग तो उन कहानियों का है जो किस्सागोई शैली में लिखी गई हैं, जिनमें राजा-रानी वाली कथाओं की शैली में सारी कहानी पूरी सहजता के साथ कहने का प्रयास है । इनमें बहुत प्रवाह है और चरमोत्कर्ष के प्रति विशेष सजगता प्रदर्शित की गई है। दूसरा वर्ग उन कहानियों का है जिनमें प्रेमचन्द की वर्णनात्मक शैली का प्रयोग है । इन कहानियों में उनकी सामाजिक कहानियाँ अधिक हैं और उनमें किसी-किसी विचार-तत्व को प्रधानता दी गई है। ये कहानियाँ पढ़ कर ऐसा प्रतीत होता है कि वर्मा जी के पास पहले से ही कोई बना-बनाया समाधान या सत्य है, जिसे स्पष्ट करने के लिए ही सारा कथानक संगुफित किया गया है । यह मंगुफन बहुधा बहुत कृत्रिम और अविश्वसनीय प्रतीत होता है । ऐसा लगता है कि उस पूर्व-निश्चित समाधान या सत्य को पा लेने की चेष्टा में वर्मा जी इतने अातुर से हा जाते हैं कि उस दिशा में किसी-न-किसी प्रकार शीघ्रतिशीघ्र पहुँच जाने की कोशिश करते हैं। ये कहानियाँ आदर्श की दृष्टि से ठोस कहानियाँ हैं और प्रत्येक दो-तीन वाक्य के उपरांत या हर पैरे में किसी-न-किसी सत्य, सूत्र या आदर्श को खोज निकालने की चेष्टा की गई है, जो बड़ा असंगत और अस्वाभाविक प्रतीत होता है। वर्मा जी की अधिकांश कहानियाँ घटना-प्रधान हैं और घटनाओं का संगुफन केवल एक ही उद्देश्य से किया गया है. और वह यह कि चरमोत्कर्ष अधिक-से-अधिक रोचक प्रतीत हो । इन घटनाओं में बहुधा एकसूत्रता भंग हो गई है या वे अप्रासंगिक हैं, जिनका मुख्य पात्रों या कथानक से कोई सम्बन्ध स्थापित नहीं हो पाता । जहाँ तक पात्रों एवं चरित्र-चित्रण का प्रश्न है, वर्मा जी के पात्रों में आदर्श अधिक है, यथार्थ कम । उनमें सौम्यता, शालीनता, कर्मठता, कर्तव्यपरायणता, राष्ट्रीयता, देश-प्रेम, त्याग-बलिदान और मानवता