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अाधुनिक कहानी का परिपार्श्व/४५ और मुहावरेदार है । कौशिश आदर्शवाद की ओर झुके हुए कहानीकार हैं । यद्यपि समस्याओं का निर्वाह एवं पात्रों के व्यक्तित्व का समाधान उन्होंने यथार्थ ढंग से करने की चेप्टा की है, पर उनकी मूल भाव-धारा चूंकि आदर्शवादी एवं सुधारवादी थी, इसीलिए अनेक कहानियों में समस्याओं का समनधान यांत्रिक आदर्शवाद के आधार पर होने के कारण वे कृत्रिम बन पड़ी हैं। 'गत्प मन्दिर', 'चित्रशाला', 'प्रेम-प्रतिमा', 'कल्लोल' आदि उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं ।
जयशंकर 'प्रसाद' का आधुनिक कहानी-लेखकों में अपना विशेष स्थान है । उन्होंने अपनी कहानियाँ राष्ट्रीयता और सुधारवाद से प्रेरित होकर नहीं लिखीं। उनकी कहानियाँ अधिकतर सांस्कृतिक पृष्ठभूमि पर स्थित रहती हैं। उनकी कहानियाँ प्रायः भाव-प्रधान और कल्पना-प्रधान होती हैं और वह पाठकों के हृदय को अधिक स्पर्श करती हैं, बुद्धि को नहीं। उनकी कहानियों में मनुष्य का हृदय अधिक प्रस्फुटित हुआ है, उसका वाह्य जीवन नहीं । कवि होने के नाते उनकी अनेक कहानियों में काव्यत्व भी आ गया है और भाषा, प्रकृति का मानवीकरण आदि विशेषताएँ भी उनकी कविताओं के अनुरूप हो गई हैं। कथा-भाग उनकी कहानियों में कम रहता है । वास्तव में 'प्रसाद' आंतरिक सौन्दर्य पर जोर देने वाले कहानी-लेखक हैं। उनकी कहानियों का वातावरण अद्भुत कवित्व-शक्ति से ओतप्रोत रहता है। 'प्रसाद' ने कुछ घटना-प्रधान, चरित्रप्रधान और ऐतिहासिक तथा यथार्थवादी कहानियाँ भी लिखी हैं। उनकी सब प्रकार की कहानियों में खण्डकाव्य का-सा आनन्द आता है। विविध प्रकार की परिस्थितियों में उनके पात्रों का चरित्र प्रस्फुटित होता है । नाटकीयता उनकी अपनी विशेषता है। वास्तव में अपनी कहानियों में वे अपना कवि और नाटककार का रूप नहीं छोड़ सके । नाटककार होने के कारण उनके कथोपकथनों में नाटकीय सौन्दर्य और अर्थ-गाम्भीर्य मिलता है । साथ ही उनसे घटना-विकास और पात्रों के चरित्र-विकास पर भी प्रकाश पड़ता है। उत्सुकता और कुतूहल द्वारा वे कहानी का