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४२/अाधुनिक कहानी का परिपार्श्व कहानी में उसके जीवन की प्रमुख समस्याएँ लेकर उन्हें दिशोन्मुख करने का ही प्रयत्न नहीं किया, वरन् अनेक विषम समस्याओं का अपने ढंग से समाधान प्रस्तुत कर उनका सुधार करने की भी चेष्टा की। वस्तुतः राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक, एवं सांस्कृतिक दृष्टि से सुधारवादी भावना ही उनकी कहानियों का मूलाधार है, जिसकी भित्ति पर सारी कहानियाँ संगुफित हुई हैं। यही नहीं, भाषा की दृष्टि से भी प्रेमचन्द ने एक क्रान्तिकारी परिवर्तन लाने की चेष्टा की। अभी तक भापा का कोई निश्चित स्वरूप नहीं था। प्रेमचन्द से पूर्व भारतेन्दु और उनके सहयोगी लेखकों ने इस दिशा में कुछ प्रयत्न अवश्य किया था, पर सुनिश्चित रूप से भाषा को गरिमा देने में वे असमर्थ रहे थे । प्रेमचन्द ने पहली बार भाषा को यथार्थ स्वरूप देकर उसे व्यापक रूप देने का प्रयत्न किया, जिससे तत्कालीन कहानी-साहित्य को अभूतपूर्व लोकप्रियता पाने की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया। भाषा को मुहावरेदानी एवं रवानी से ओजस्वी तथा प्राणवान बनाने, अर्थ की गरिमा से पूर्ण करने और मर्यादित रूप देने का बहुत बड़ा श्रेय प्रेमचन्द को ही है-यही विशेषताएँ उनकी कहानियों की अर्थवत्ता को गम्भीर बनाती है। इस प्रकार प्रेमचन्द की कहानियों में 'नएपन' की वे सारी विशेषताएँ लक्षित होती हैं, जिन्हें आधुनिक कहानी के 'नएपन' के दावे में प्रायः सिद्ध करने की चेष्टा की जाती है। उनमें परम्परा के प्रति विद्रोह है, • नई भाषा को अपनाने का आग्रह है, स्थूलता से सूक्ष्मता एवं सामाजिक परिधि में मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करने की प्रवृत्ति है, सामाजिक दायित्व-बोध के निर्वाह की भावना है और मनुष्य को उसके यथार्थ परिवेश में देखने और चित्रित करने की प्रयत्नशीलता है-इन सबसे अधिक उनमें समप्टिगत चिंतन की अभिव्यक्ति है, महती कल्याणकारी भावना है और एक विराट मानवतावादी दृष्टिकोण का प्रतिपादन है ।
विश्वम्भरनाथ शर्मा कौशिक' प्रमुखतः प्रेमचन्द की ही प्रवृत्तियों को लेकर आगे बढ़ने वाले कहानीकार हैं । वे मूलतः आदर्शवादी थे और