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________________ आधुनिक कहानी का परिपार्श्व / ४१ इकहरे शिल्प का विधान प्राप्त होता है । उनमें कथानक और पात्रों का सामंजस्य बड़े कुशल एवं प्रौढ़ ढंग से किया गया है तथा पात्रों की स्वाभाविकता का निर्वाह भी बड़ी दक्षता के साथ हुआ है । इन कहानियों में पात्रों के मानसिक अन्तर्द्वन्द्व का विश्लेषण और मनोवैज्ञानिक ऊहापोह का भी चित्रण मिलता है । पर द्रष्टव्य यह है कि उन्होंने कभी ऐसा करने में व्यक्ति की महत्ता को समाज की तुलना में अधिक महत्व - पूर्ण सिद्ध करने की चेष्टा न तो की और न वैयक्तिकता की सीमा को ही स्पर्श करने का प्रयत्न किया । यह एक बड़ी बात थी और अन्तर एवं वाह्य का समष्टिगत जीवन चिन्तन के आधार पर मनोवैज्ञानिक विश्लेषण एक बहुत बड़ी उपलब्धि है । इन कहानियों के पात्र उन्होंने जीवन के यथार्थ से चुने हैं, और प्रमुख रूप से जातीय पात्र हैं, जो उनकी जैसी विचारधारा वाले लेखक के लिए अत्यन्त स्वाभाविक बात है । इन पात्रों के माध्यम से उन्होंने सामाजिक कल्याण एवं मानवतावादी दृष्टिकोण प्रतिपादित करने की सफल चेष्टा की है । वे स्वीकारते थे कि मनुष्य की भलाई या बुराई की परख उसकी सामाजिक या सामाजिक कृतियों में है । जिस काम से मनुष्य-समाज को क्षति पहुँचती है, वह पाप है । जिससे उसका उपकार होता है, वह पुण्य है । सामाजिक अपकार या उपकार से परे हमारे किसी कार्य का कोई महत्व नहीं है और मानव-जीवन का इतिहास शुरू से सामाजिक उपकार की मर्यादा बाँधता चला आया है । भिन्न-भिन्न समाजों और श्रेणियों में यह मर्यादा भी भिन्न है । पीछे पृष्ठभूमि वाले अध्याय में यह स्पष्ट किया जा चुका है कि पाश्चात्य सभ्यता के संस्पर्श से किस प्रकार एक नए मध्य वर्ग का उदय हो रहा था, जो नवोत्थान की भावना से ओतप्रोत था और पुरातनत्व एवं नवोन्मेष की भावनाओं के संधि-स्थल पर खड़ा हुआ था । वह विभ्रान्त भी था और आगे बढ़ने के लिए आकुल भी । प्रेमचन्द ने अपनी कहानियों में इसी मध्य वर्ग को प्रमुखता प्रदान की और एक-एक ३
SR No.010026
Book TitleAadhunik Kahani ka Pariparshva
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size18 MB
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