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४० आधुनिक कहानी का परिपार्श्व
होती है । इन कहानियों में शिल्प का हल्कापन उन्हें लचर बना देता है और वे वैसी गढ़ी हुई सुसंगुफित कहानियाँ प्रतीत नहीं होती जैसी कि उनकी अन्तिम दौर की कहानियाँ । उनकी अधिकांश कहानियों में एक प्रमुख दोप असन्तुलन का भी है। उन्होंने कहानियों में भी अवांतर कथाओं की संयोजना की है और विराट परिधि को समेटने की चेष्टा की है । वास्तव में उन्होंने अपने साहित्य के लिए जीवन का विशाल चित्रपट चुना था और मानव-जीवन से बहु-विधिय पक्षों को संस्पर्श देकर व्यापक आयामों को स्थान देना चाहते थे। इस प्रक्रिया में उनकी बहुत-सी कहा'नियों में दुहरे-तिहरे कथानक देने की सी शैली मिलती है । इन कहानियों में विराट जीवन के यथार्थ की विस्तृत कल्पना तो मिलती है,पर प्रेमचन्द जहाँ हिट करना चाहते थे, वह बिन्दु बहुधा सशक्तता एवं प्रभावशीलता से स्पष्ट नहीं हो पाया है। इसका एक दूसरा कारण यह भी है कि प्रेमचन्द में स्थूलता बहुत अधिक थी और विवरण देने की प्रवृत्ति प्रमुख रूप से थी। यही कारण है कि उनकी अधिकांश कहानियाँ वर्णनात्मक शैली में हैं । इनमें जहाँ विषय वस्तु को अनावश्यक विस्तार मिला है, वहाँ पात्रों के साथ भी उचित न्याय नहीं हो पाया है, जिसके कारण ये . पात्र बहुधा कैरीकेचर या निर्जीव कठपुतली मात्र बनकर रह गए हैं, जिन पर प्रेमचन्द की विचारधारा इतने सशक्त रूप में आधारित हो गई है कि उसके नीचे दवे वे पात्र कभी परिस्थितियों से ऊपर नहीं उठ पाते । इन कहानियों में एक विशेष प्रकार का मैनरिज्म प्राप्त होता है जिससे प्रेमचन्द बच नहीं पाते ।
किन्तु उनसे सर्वथा भिन्न उनकी कहानियों का दूसरा वर्ग है, जिसमें हर लिहाज़ से चुस्त एवं दुरुस्त कहानियाँ हैं। उनमें स्थूलता से सूक्ष्मता की ओर जाने की प्रवृत्ति लक्षित होती है और बारीक-से-बारीक बातों को भी उभारने की समर्थता दृष्टिगोचर होती है । 'बड़े भाई साहब', 'मनोवृत्ति', 'नशा', 'पूस की रात', 'पंच परमेश्वर' तथा 'शतरंज के खिलाड़ी' आदि ऐसी ही कहानियाँ हैं जिनमें संतुलित कथानक और