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________________ २ परम्परा : धाराएँ और स्पष्टीकरण ( १ ) पीछे एक संक्षिप्त पृष्ठभूमि देकर यह स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है कि जीवन की किन परिस्थितियों में हिन्दी कथा साहित्य का अविर्भाव हुआ । प्रेमचन्द ने अपने आगमन के साथ ही हिन्दी कहानियों का स्वरूप निर्माण करना प्रारम्भ किया और शीघ्र ही उसे उसका वास्तविक स्वरूप भी प्राप्त हुआ । इस काल में कहानी की दो धाराएँ प्राप्त होती हैं एक तो सामाजिक दायित्व बोध की धारा और दूसरी आत्म-परक विश्लेषण की धारा । सामाजिक दायित्व बोध की धारा का सम्बन्ध सीधे जीवन से है । • इस धारा के लेखकों ने जीवन के यथार्थ को ही प्रमुखता प्रदान की । उनका वैयक्तिक दृष्टिकोण चाहे कुछ भी रहा हो, पर जीवन तत्वों की अवहेलना करना उन्हें न तो रुचिकर था और न इसे वे वांछनीय ही समझते थे । बहुत-कुछ सीमा तक यह उचित ही था । लेखक वस्तुत: सामाजिक प्राणी होता है । वह वही जीवन जीता है, जो उसके चारों तरफ के परिवेश में दूसरे लोग । उन लोगों को आपस में अटूट सम्बन्ध होता है । जब जीवन - तत्वों एवं सामाजिक यथार्थ की अवहेलना कर लेखक काल्पनिक कृत्रिम संसार का निर्माण करता है, तो वह एक प्रकार से मृत्यु का ही वरण नहीं करता, वरन् अपने आप से सम्बद्ध सत्यता को भी झुठलाता है । यदि लेखक सजग एवं सचेत रहता है, उसके पास कोई जीवन दृष्टि होती है, तो उसका यह प्रधान कर्त्तव्य हो जाता है कि वह अपने समाज का युग का, परिवेश का और अपने चारों तरफ के
SR No.010026
Book TitleAadhunik Kahani ka Pariparshva
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size18 MB
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