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________________ ३२ अाधुनिक कहानी का परिपार्श्व सभी प्रकार के पिछले बंधन टूटने लगे, पर वह उच्छङ्खलता नहीं थी। वह व्यक्ति और समाज में नवीन वैज्ञानिक आधारों पर आधारित समन्वय उपस्थित करने का एक नवीन प्रयास था और इस प्रयास के पीछे ज्ञान की अतृप्त पिपासा थी। _____ नवोत्थित भारत के दूरदर्शी मनीषियों एवं विचारकों ने नवयुग का स्वागत किया। उन्हें अपने युग पर गर्व था-यद्यपि उस युग में रहने का, विशेषत: मध्ययुगीन पौराणिकता के बाद, मूल्य भी चुकाना पड़ा । वास्तव में भारत को आधुनिकता की प्रसव-पीड़ा का अनुभव उन्नीसवीं शताब्दी में ही हुआ । इसलिए हमें इस शताब्दी में अन्तर्विरोध और अनिश्चितता के दर्शन भी होते हैं। पुराने मार्ग को छोड़कर नया मार्ग अपनाते समय अनेक प्रकार के प्रश्नों और समस्याओं का सामने आ जाना स्वाभाविक है । क्यों, कैसे और कहाँ-ये शब्द मन और मस्तिष्क को झकझोरते रहे । उन्नीसवीं शताब्दी के व्यक्ति के मन में संघर्ष था, पुरातनत्व के प्रति मोह और नवीनता के प्रति आकर्षण दोनों में परस्पर खींचातानी थी, अपने क्षोभपूर्ण वर्तमान और अनिश्चित भविष्य के कारण उसका हृदय नाना प्रकार के संशयों से आंदोलित था। यह ठीक है। किन्तु उसकी शक्ति का परिचय इस बात से मिलता है कि उसने अपने अन्तर्विरोधों, संघर्षों, अनिश्चितताओं और संशयों का समाधान करने की भरपूर चेष्टा की । आत्म-मंथन और आत्म-विश्लेषण का ऐसा प्रयास भारतीय इतिहास की पिछली कई शताब्दियों तक नहीं मिलता। एक प्राचीन सांस्कृतिक परम्परा के उत्तराधिकारी होने के कारण तत्कालीन मनीषी आत्म-सम्मान और साहस के साथ कदम बढ़ाना चाहते थे और ऐसे आदर्शों को जन्म देना चाहते थे जो तत्कालीन जीवन में फिर से प्राण फूंक सकते । इतिहास के चौरस्ते पर खड़े हुए और सब तरह की नई-पुरानी और अच्छी-बुरी चीज़ों के घिरे रहने पर भी उन्होंने निडर होकर भारतीय जीवन को समृद्ध बनाने का ध्रुव निश्चय किया। __ इस ध्रुव निश्चय का ज्वलन्त रूप था सत्यान्वेषण । इसी सत्यान्वेषण
SR No.010026
Book TitleAadhunik Kahani ka Pariparshva
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size18 MB
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