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३०/प्राधुनिक कहानी का परिपार्श्व
आर्य समाज आन्दोलन इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। यह आन्दोलन जनता का आन्दोलन था। सैद्धांतिक दृष्टि से भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के और आर्य समाज के विचारों में अधिक अन्तर नहीं था। सनातनधर्मी वैष्णव होते हुए भी आर्य समाज की अनेक बातों में उन्हें स्वयं विश्वास था। ___ वास्तव में हिन्दी नवोत्थान द्विमुखी होकर अवतरित हुआ था। एक की दृष्टि भूतकालीन गौरव की ओर थी, तो दूसरे की दृष्टि भविष्य की ओर आशा लगाए हुए थी । नवोत्थान की अवतारणा के पीछे जिन शक्तियों ने कार्य किया, उनका उल्लेख ऊपर हो चुका है । ऐतिहासिक दृष्टि से हिन्दी का नवोत्थान आन्दोलन उस व्यापक भारतीय आन्दोलन का एक भाग था, जो उन्नीसवीं शताब्दी के कुछ पूर्व से ही, प्रधानतः ऐंग्लोसैक्सन सभ्यता के सम्पर्क द्वारा मिश्र, टर्की, अरब, ईराक़, ईरान, अफग़ानिस्तान, चीन, जापान, जावा, सुमात्रा, मलयद्वीप आदि समस्त पूर्वी संसार का जीवन स्वन्दित कर रहा था । पूर्वी संसार का आध्यात्मिक और मानसिक जीवन पूर्वी और पश्चिमी दोनों शक्तियों से प्रेरित हुआ था। उस समय उसकी क्रियात्मक शक्ति का ह्रास हो चुका था । विज्ञान और औद्योगिक विकास के बल पर पश्चिम को विजय प्राप्त हुई । स्त्रियों की स्वाधीनता, विविध सामाजिक एवं धार्मिक सुधारवादी आन्दोलनों, राजनीतिक चेतना, मातृभाषा, नए वर्गों के जन्म आदि के रूप में पाश्चात्य बिचारों का प्रभाव सभी देशों के नवोत्थान आन्दोलनों पर लगभग समान रूप से पाया जाता है। इस सम्बन्ध में भारतीय आन्दोलन की अपनी एक विशिष्टता थी। एक प्राचीन तथा उच्च सभ्यता का उत्तराधिकारी और यूरोप से दूर होने के कारण भारत दूसरा टर्की न बन सकता था। हिन्दी-भाषियों ने एक सार्वभौम ऐतिहासिक क्रम में अपना पूर्ण योग दिया। वे क्रान्तिकारी न होकर सुधारवादी थे, अथवा उनके सुधार ही मौन क्रान्ति का रूप धारण कर रहे थे । पश्चिमी विचारों के आधात ने भारत के प्राचीन सांस्कृतिक भवन की दीवारों को एकबारगी हिला