________________
आधुनिक कहानी का परिपार्श्व/२६ नए-नए साहित्यिक रूपों का जन्म हुआ और भाषा का शब्द-भांडार और अभिव्यंजनात्मक शक्ति बढ़ी ।
किन्तु यह गतिशीलता समाज के अल्पसंख्यक लोगों तक सीमित थी। अशिक्षित होने के कारण साधारण जनता का इस सजगता, सप्राणता एवं सजीवता से सम्बन्ध नहीं था और न साधारण जनता की शक्ति का कोई विशेष प्रकटीकरण राजनीतिक क्षेत्र में ही हुआ। प्राचीन ग्राम-व्यवस्था टूट जाने और औद्योगीकरण के अभाव में उसमें सामूहिक चेतना का जन्म न हो सका । उच्च वर्ग नवीन शासन से आतंकित और अपने वर्गीय स्वार्थ में लीन था। सजीव अँगरेज़ जाति ने विजय-गर्व के वशीभूत हो भारतवासियों को अपने से अलग रखा। फलतः उनके सम्पर्क का जितना रचनात्मक और क्रियात्मक प्रभाव पड़ना चाहिए था, उतना प्रभाव न पड़ सका । मध्यकालीन भारत में जो सांस्कृतिक चेतना हुई थी, उसका अँगरेज़ों के शासन काल में अभाव रहा। प्रारम्भ में जहाँ-जहाँ अँगरेज़ों का बराबरी के दर्जे पर देशवासियों के साथ सम्पर्क स्थापित हुआ, वहाँ-वहाँ आशाजनक सांस्कृतिक प्रभाव दृष्टिगोचर हुए। अवध में अमानत कृत 'इन्दर-सभा' इसी प्रभाव के कारण एक मुस्लिम राज-दरबार में जन्म ले सकी थी। इस प्रकार का सांस्कृतिक सम्बन्ध कम स्थानों पर और अस्थायी रूप से स्थापित हुआ और आगे चलकर उतना भी न रहा । अँगरेज़ी शिक्षा के कारण शिक्षितों और साधारण जनता के बीच व्यवधान पैदा हो गया था । जनता की ओर केवल उन्हीं लोगों ने ध्यान दिया, जिन्होंने अँगरेज़ी शिक्षा प्राप्त करने पर भी भारतीयता और देशी भाषा एवं साहित्य से सम्बन्ध बनाए रखा अथवा जो अँगरेज़ी शिक्षा प्राप्त न करने भी नवयुग की चेतना से अनुप्राणित थे। उन्होंने 'बिगड़े हुए' शिक्षित युवकों के सुधार की ओर भी विशेष ध्यान दिया। नवोत्थान काल के प्रथम चरण में जितने भी सार्वजनिक आन्दोलनों का जन्म हुआ उन सभी ने अन्ततः किसी-नकिसी प्रकार राष्ट्रीय रूप ग्रहण किया। हिन्दी से सम्बन्ध रखने वाला