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आधुनिक कहानी का परिपार्श्व/२७ सम्पर्क से उत्पन्न मिश्रित जीवन की ओर ध्यान न दिया । और अन्त में राष्ट्रीय चेतना का रूप राजनीतिक और आर्थिक न रहकर प्रमुख रूप से धार्मिक और आर्थिक राष्ट्रीयता के रूप में परिणत हो गया। मध्य वर्ग की इसी नव-चेतना ने भारतीय नवोत्थान का रूप ग्रहण किया। ___संसार में प्रायः धर्म और समाज में अभिन्न सम्बन्ध रहता है। किन्तु हिन्दू धर्म में यह बात सबसे अधिक देखी जाती है । हिन्दू धर्म वास्तव में धार्मिक व्यवस्था की अपेक्षा सामाजिक व्यवस्था अधिक है। धर्म की दृष्टि से उसमें अनेक 'वादों' का संगठन होते हुए भी अनेकता में एकता का सूत्र अन्तनिहित है । पाश्चात्य सभ्यता के सम्पर्क से उत्पन्न नवीन धार्मिक तथा सामाजिक आन्दोलनों के मूल में यही तथ्य था । नवशिक्षित हिन्दुओं ने नवोत्थान की भावना से अनुप्राणित होकर धर्म और समाज की कुरीतियाँ और कुप्रथाएँ दूर करने का प्रयत्न किया । भारतीय दृष्टिकोण लिए हुए सुधारवादी आन्दोलनों का एक मुख्य ध्येय अनेक अँगरेज़ी शिक्षित नवयुवकों का सुधार करना भी था । नवीन शिक्षा के कारण देश में प्राचीन धर्म-सम्बन्धी अनभिज्ञता बढ़ने और सांस्कृतिक ह्रास होने के कारण देशभक्तों को मर्मान्तक पीड़ा होती थी। नव-शिक्षित युवक ज्ञान-विज्ञान की ओर झुक कर विद्योपार्जन कर रहे थे, यह ठीक है, परन्तु विदेशी शिक्षा ने भारत के इन नवयुवकों को इतना मोहित कर लिया था कि वे स्वधर्माचारों से उदासीन और विदेशी पद्धतियों के गुलाम बन गए। वे अशिक्षित भारतीयों का उद्धार करने के बजाय उनसे घृणा करने लगे। यह शिक्षा उनके नैतिक जीवन के लिए भी अनुकूल सिद्ध न हुई । विदेशी हाव-भाव, चाल-चलन, आचार-विचार, खान-पान आदि के वे ऐसे भक्त बने कि स्वदेश की बातों को वे गँवारू समझने लगे। इसका चरम रूप तो स्वातंत्र्योत्तर काल में प्राप्त होता है, जबकि वास्तव में 'भारतीयता' नाम की कोई चीज़ नई पीढ़ी में मिलती ही नहीं है।
अन्त में उपर्युक्त विश्लेषण से हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि