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________________ २४ आधुनिक कहानी का परिपार्श्व अवश्य बतलाना पड़ा, किन्तु ऐसी अनेक बातें, जिन्हें इस्लाम धर्म से ग्रहण किया जाता है, वे स्वयं हिन्दू धर्म की ही हैं। समय-समय पर विशेष परिस्थितियों का सामना करने के लिए समाज से नेताओं ने हिन्दू धर्म के अक्षय भाण्डार में से कोई एक अनुकूल तत्व खोज कर आत्मरक्षा के साधन जुटाए, यही हिन्दू धर्म की गतिशीलता है। ___ मुग़ल साम्राज्य के ध्वंस के बाद अँगरेज़ों के साथ-साथ ईसाई मिशनरी भी इस देश में आए। उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य तक ईसाई धर्म का भारत में काफ़ी प्रचार हो चुका था । इस काल में ब्रह्म समाज और आर्य समाज ने पतित हिन्दू समाज से असंतुष्ट और उसके प्रति विद्रोह करने वाले भारतवासियों की सुधारवादी प्रत्ति और जिज्ञासा की परितुष्टि कर कर अनेक हिन्दू धर्मावलम्बियों को, जो ईसाई या मुसलमान हो गए थे, फिर से हिन्दू धर्म की सघन छाया के नीचे ले लिया। इस कार्य में उन्हें पूर्ण सफलता न मिल सकने का दायित्व हिन्दू समाज की कमज़ोर पाचन शक्ति पर था । हिन्दू धर्म के पुनरुद्धार के लिए नई चेष्टाएँ की जाने लगी । नवशिक्षा और सामाजिक आन्दोलनों के फलस्वरूप प्रात्मविस्मृत भारतीय जनसमूह को फिर से अपने धर्म का श्रेष्ठत्व मान्य हुा ।। लेकिन इतना अवश्य स्वीकारना होगा कि ईसाई पादरियों ने अनेक भयंकर और क्रूर धार्मिक एवं सामाजिक प्रथाओं के विरुद्ध आन्दोलन किया और सरकार को उन प्रथाओं पर प्रतिबन्ध लगाने के लिए विवश किया । धार्मिक और सामाजिक चेतना के फलस्वरूप स्वयं हिन्दुओं में उनके विरुद्ध आन्दोलन शुरू हो गया था । अनेक नवशिक्षित भारतीय उन कुप्रथाओं को रोकने का प्रयत्न करने लगे। सरकार को अच्छा अवसर मिला । उसने केवल तांत्रिक मत की प्रबलता लिए हुए नर-मांस द्वारा देवी, चण्डिका, चामुण्डा और कालो आदि शक्तियों की उपासना बन्द कर दी। वंश-वृद्धि की कामना से कभी-कभी हिन्दू लोग अपने प्राणाधिक प्रिय पुत्रों को गंगासागर में फेंक देते थे या देवताओं पर बलि चढ़ा देते थे। कन्या को तो जन्म के समय ही मार डालते थे । सरकार
SR No.010026
Book TitleAadhunik Kahani ka Pariparshva
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size18 MB
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