SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 19
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आधुनिक कहानी का परिपार्श्व/२३. है कि पाश्चात्य सभ्यता के स्पर्श से देश का शिक्षित समुदाय एक या दूसरी दिशा में चलने के लिए आतुर हो उठा था, उसमें गतिशीलता आ गई थी। इसके अतिरिक्त जो कुछ देश में था, वह पुराना था और बहुत बड़े अंशों में पुराना था। यह स्थिति १९४७ तक आते-आते बहुत स्पष्ट हो गई थी। स्वातंत्र्योत्तर काल में इसके दो रूप प्राप्त हुए । बड़े-बड़े नगरों में अधिकांशतः जीवन नए धरातल पर विकसित हुआ, जो मुख्यतः पश्चिमी सभ्यता की देन था। वहाँ के लोगों में परम्परा के प्रति लेशमात्र भी मोह न था और यथासम्भव 'भारतीयता' को वे मिटा कर वे व्यापक नवीन परिवेश को आत्मसात् कर नया बनना चाहते थे। इसके विपरीत दूसरे छोटे शहर थे, जो इस नवीन-पुराने के संधिस्थल पर खड़े थे, जहाँ जीवन के विविध रूप प्रसारित थे। वे न तो एकदम नया बनना चाहते थे और न पुरातनवादी । वे दोनों ही दिशाओं के उपयोगी तत्त्वों को लेकर आगे बढ़ना चाहते थे। इस प्रवृत्ति ने सामूहिक भारतीय चेतना को स्वातंत्र्योत्तर काल में एक अभिनव दिशा प्रदान की, इसमें कोई सन्देह नहीं और इस काल में एक सर्वथा नई जीवन-दृष्टि निर्मित हुई, जो पूर्णतया 'भारतीय' नहीं थी, यह निःसंकोच स्वीकारना होगा। इस काल में आध्यात्मिकता के मूल तत्त्वों की भित्ति पर खड़ा हुआ वृहत् हिन्दू जीवन प्रारणहीन हो गया था। काल-गति से उसका जीवन निस्तेज और निस्पन्द हो गया था। ईसाई और इस्लाम धर्मों से वह अत्यन्त प्राचीन था। इतनी लम्बी अवधि में विभिन्न संकट-कालों में उसकी विशालता ही उसके प्राण बचाने में बहुत उपयोगी सिद्ध हुई। ऊपरी विभिन्नताएँ और दुर्बलताएँ होते हुए भी हिन्दू समाज रहस्यमय आध्यात्मिक एकता के सूत्र में बँधा हुआ था । मुसलमानों के दीर्घ-कालव्यापी राजत्व-काल में इस्लाम धर्म से प्रभावित होकर देश जातीय उन्नति के मूल सामाजिक संगठन, ऐक्य और स्वजाति-हितैषिता का महत्त्व समझने लगा था । इस्लाम धर्म का हिन्दू समाज तथा धर्म पर प्रभाव
SR No.010026
Book TitleAadhunik Kahani ka Pariparshva
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy