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आधुनिक कहानी का परिपार्श्व/२१
समस्याओं के प्रति उदासीन बनी रही। एक विदेशी सरकार के स्थान पर यह कार्य स्वयं भारतवासी ही अच्छी तरह कर सकते थे और यद्यपि सामाजिक तथा धार्मिक अराजकता कुछ ही लोगों तक सीमित थी तो भी उनका अस्तित्व समाज के लिए खतरे से खाली न था। उनमें वास्तविक वस्तुस्थिति पहचान कर उसके अनुरूप कार्य करने की क्षमता रखने वाले बहुत कम थे । किन्तु साथ ही यह भी स्वीकार करना पड़ेगा कि जिन विषम परिस्थितियों में वे पड़ गए थे, उन पर उनका कोई अधिकार नहीं था; वे विवश थे । वे लोग काफी शिक्षित अवश्य थे, पर परिस्थितिवश अपने ही समाज में खप नहीं रहे थे। उनका मानसिक जीवन अनेक विरोधी तत्वों से पूर्ण था। अँगरेज़ी शिक्षा प्राप्त करने वालों में वे अग्रणी थे । इसके लिए उन्हें जो मूल्य चुकाना पड़ा वह किसी भी स्थिति में कम नहीं था । केवल जातीय संस्कारों और सामाजिक भावनाओं ने उनके जीवन की रक्षा की। पाश्चात्य सभ्यता के अनेक अवगुण
आ जाने पर भी उनमें उसके सद्गुणों का अभाव नहीं था । सामाजिक, धार्मिक तथा घरेलू जीवन की अराजकताओं और राजनीतिक असन्तोष के बीच अपने जीवन का मार्ग प्रशस्त करने में नव-शिक्षितों को जिन कठिनाइयों का अनुभव करना पड़ा, उनका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है । वैसे भी अँगरेज़ी शिक्षा का सूत्रपात हुए अभी बहुत दिन नहीं हुए थे । संक्रान्ति-कालीन अनेक दोष उस समय उत्पन्न हो गए तों कोई आश्चर्य नहीं। उस समय जो थोड़े-से व्यक्ति नव-शिक्षा प्राप्त करने पर भी अपने जीवन-मूल से शक्ति संचित करना न भूले वे ही धर्म और समाज के सच्चे नेता बने । पाश्चात्य सभ्यता के प्रहार-पर-प्रहार सहन करने पर भी अपना अस्तित्व बनाए रखने वाले हिन्दू धर्म की मूल शक्ति
और समाज की पुरातनत्व के प्रति मोह वाली प्रवृत्ति का वास्तविक रूप न पहचान कर केवल हिन्दू धर्म के श्रेष्ठ और हीन सभी रूपों का खण्डन करने वाले नवशिक्षितों को अपनाने में समाज को संकोच हुआ ।
यद्यपि नवशिक्षा का सम्यक् प्रभाव अच्छा न पड़ा, तो भी यह नहीं