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प्राधुनिक कहानी का परिपार्श्व/१६ शिक्षा का स्तर दिन-प्रतिदिन गिरता ही गया । हमारे जेल गए देशभक्त नेता, सिवाय नारे देने के, शिक्षा का न तो राष्ट्रीयकरण कर सके और न उसमें कोई आमूलचूल परिवर्तन ही कर सके । इसके परिणाम हमारे
आज के जीवन में स्पष्टतया देखने में आ रहे हैं । आज की वर्तमान पीढ़ी अपने देश के गौरव, प्राचीन संस्कृति, मूल्य मर्यादा के प्रति किंचित् भी सजग नहीं हैं और न ही इसका विशेष गर्व ही उसे है। अभी हाल ही में पाकिस्तान द्वारा कश्मीर पर किए गए आक्रमण के पश्चात् जिस राष्ट्रीयता का नए सिरे से अम्भुदय हुआ था, उसकी अवहेलना जिस प्रकार की गई, वह एक दुःखदायी समस्या है, जो हमारे नेताओं की असमर्थता एवं मनोवृत्ति का परिचय देती है । अतः आज का भारतीय एक लम्बी दासता के बाद स्वातंत्र्योत्तर काल में जीवन जीने के बावजूद दास मनोवत्ति का ही शिकार है और पश्चिमी आचार-व्यवहार को अधिक गर्व से देखता है। अपनी उपयोगी भारतीय परम्पराएँ भी उसे अपमानजनक प्रतीत होती हैं। अँगरेज़ी शिक्षा नीति का यह एक बहुत बड़ा परिणाम है। . अँगरेज़ी राज्य में प्रचलित वैज्ञानिक साधनों तथा नवीन शिक्षा के प्रचार और भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति की पारस्परिक क्रिया-प्रतिक्रिया का एक और महत्वपूर्ण पहलू है। हिन्दू धर्म तथा जीवन में पहले भी अनेक परिवर्तन हुए थे। किन्तु ये परिवर्तन देश-जीवन की आभ्यन्तरिक शक्तियों के स्वाभाविक विकास के रूप में हुए थे । उन्नीसवीं शताब्दी में जो परिवर्तन हुए, वे स्वाभाविक विकास के रूप में न होकर दो भिन्न सभ्यताओं के सम्पर्क द्वारा हुए । सम्पर्क स्थापित होने के समय इन दो सभ्यताओं में एक दुरूह, उन्नत तथा सजीव थी और दूसरी सरल, पतित और गतिहीन थी। फलतः पश्चिमी सभ्यता के सम्पर्क ने भारतीय समाज को स्वाभाविक प्रगति प्रदान न कर उसके अलसाए जीवन को तीव्र आघात तथा वेग से झकझोर डाला। इसलिए इस सम्पर्क से बहुत अच्छा परिणाम न निकल कर अनेक अंशों में सामाजिक एवं धार्मिक