SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 14
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८/आधुनिक कहानी का परिपार्श्व लिए शिक्षितों को मैक्समूलर तथा अन्य पाश्चात्य विद्वानों की कृतियाँ उठाकर देखनी पड़ती थीं। कुछ भारतीय इतिहास-लेखक भी अपनी कृतियों से भारत के प्राचीन गौरव घर प्रकाश डाल कर देशवसियों का 'राष्ट्रीय गर्व' बढ़ा रहे थे । अपने पूर्व पुरुषों की रचनाओं को वे ज्ञान के क्षेत्र में अन्तिम समझते थे। अरबी, फ़ारसी और उर्दू साहित्य के स्थान पर भी अँगरेजी साहित्य का अध्ययन होने लगा था। कुछ लोग तो ऐसे भी मौजूद थे जो प्राचीन ज्ञान को रद्दी के टोकरे में फेंकने योग्य समझते थे। संक्षेप में, प्राचीन भारत के प्रति लोगों को किसी-न-किसी रूप में अनभिज्ञता ही अधिक थी। अँगरेज़ी भाषा को माध्यम बनाने से भारतीय साहित्य और जीवन का बड़ा अहित हुआ । भाषाओं की उन्नति रुक गई और देश की क्रियात्मक शक्ति का ह्रास हो गया । पाश्चात्य शिक्षा के प्रभाव से अँगरेज़ी पढ़ने-लिखने वालों की मौलिकता और मानसिक शक्ति का विकास न हो सका। जिन महान व्यक्तियों पर आज देश गर्व करता है, वे इस शिक्षा प्रणाली के कारण नहीं, वरन् अपनी शक्ति से उसकी बुराइयाँ दूर करने के कारण आगे बढ़ सके । नहीं तो इस शिक्षा का कुप्रभाव किसी से छिपा नहीं है और न उस समय छिपा हुआ था । भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, प्रतापनारायण मिश्र, बालमुकुन्द गुप्त आदि साहित्यिकों ने भरसक उसके विनाशकारी प्रभावों से बचने की चेतावनी दी । इस शिक्षा के पीछे अँगरेज़ों का जो ध्येय था, उसका उल्लेख पहले किया जा चुका है । केवल शुद्ध साहित्यिक शिक्षा के अतिरिक्त अन्य उपयोगी शिक्षाओं का प्रबंध इन संस्थाओं में नहीं था । फलतः भारतीय जीवन का एकांगी और संकीर्ण विकास हो पाया । अँगरेज़ी-शिक्षित व्यक्ति सरकारी नौकरी, अध्यापन-कार्य, वकालत और डॉक्टरी करने के अतिरिक्त और किसी काम के न रह गए। स्वातंत्र्योत्तर काल में भी हमारा स्वाधीन राष्ट्र, इसी मानसिक दासता का शिकार बना हुआ है। शिक्षा का यद्यपि अधिकाधिक विस्तार हुआ और स्कूल-कॉलेज तथा विश्वविद्यालयों की संख्या में अत्यधिक वृद्धि हुई, पर Rupantaruasan
SR No.010026
Book TitleAadhunik Kahani ka Pariparshva
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy