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आधुनिक कहानी का परिपाव/१४६ शिल्प-विधान प्राप्त होता है, पर वे कला को उतना महत्व नहीं देतीं, जितना जीवन के यथार्थ को । उन्होंने समकालीन युगबोध को उसके सही परिप्रेक्ष्य में देखने की चेष्टा की है और उसके यथार्थ आयामों को सत्य अभिव्यक्ति देने में ही उनकी प्रतिबद्धता सम्मिलित है । इसलिए उनकी कहानियाँ आज के पारिवारिक जीवन के उन उभरे-दबे कोनों को उभारती हैं, जो धीरे-धीरे गल रहा है और किसी-न-किसी प्रकार नई मान्यताएँ एवं मूल्य जिनका स्थान ले रहे हैं। ___'वापसी', 'कोई नहीं', 'खुले हुए दरवाजे' तथा 'ज़िन्दगी और गुलाब के फूल' उनकी उपलब्धियाँ हैं ।
मन्न भण्डारी की कहानियाँ मूलतः वैयक्तिक चेतना से अनुप्राणति हैं, पर अपने पति राजेन्द्र यादव की अपेक्षा उनकी कहानियाँ जीवन के अधिक निकट प्रतीत होती हैं और अधिक सोद्देश्यता लिए हुए हैं । उनकी कहानियाँ पारिवारिक जीवन, पति-पत्नी के सम्बन्धों एवं आधुनिक प्रेम तक सीमित हैं । स्वातंत्र्योत्तर काल में हुए नारी-जीवन में परिवर्तनों को और आज की तथाकथित आधनिकता पर उन्होंने व्यंग्यपूर्ण प्रहार किए हैं जिन्हें नारियाँ बिना किसी दूरदर्शिता के अपने जीवन से सामंजस्य बिठाने की असफल चेष्टा कर रही हैं। 'अभिनेता', 'शमशान', 'ईशा के घर इन्सान', 'कील और कसक', 'यही सच है', 'अनथाही गहराइयाँ', 'आकाश के आईने में', तीसरा आदमी' तथा 'धुटन' आदि कहानियाँ ऐसी ही हैं जिनमें आधुनिक नारी के विभिन्न परिपार्श्व स्पष्ट हुए है और नारी-जीवन की विभिन्न समस्याओं के मूल कारणों को यथार्थता से चित्रित किया गया है । कला के प्रति मन्नू भण्डारी का भी विशेष आग्रह है,पर वह कहानियों पर बहुत हावी नहीं होने पाया है और कहानियों की सहजता एवं संप्रेषणीयता बनी रहती है। उनकी कहानियों में खलने वाली बात मैनरिज़्म है, जिसके प्रति मन्नू भण्डारी का विशेष आग्रह रहता है। उनके पात्र बिना किसी एक्शन के कुछ कह ही नहीं सकते ।