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१४८/अाधुनिक कहानी का परिपार्श्व करती, वरन् उसकी अभिवृद्धि ही करती हैं, क्योंकि जिस सोद्देश्यता एवं सामाजिक यथार्थ को वे उभारना चाहते हैं, वह बहुत ही सहज एवं स्वाभाविक रूप में पाठकों तक पहुँच जाता है और सीधे मन और मस्तिष्क पर अपना अमिट प्रभाव छोड़ जाने में समर्थ होता है। ___'चीफ़ को दावत', 'सिर का सदका' तथा 'पहला पाठ' उनकी उपलब्धियाँ हैं।
उषा प्रियंवदा आज की कहानी की प्रमुख कहानी-लेखिकाओं में हैं और आज की पीढ़ी के दूसरे अनेक कहानीकारों की भाँति समष्टिगत चिन्तन से व्यष्टि-चिन्तन की ओर उनकी भावधारा भी मुड़ी है । आज के नारी-जीवन में स्वातंत्र्योत्तर काल के उपरांत जो परिवर्तन आए हैं और जिन नए मूल्यों को आत्मसात् करने और पुराने मूल्यों को अस्वीकारने के लिए आज की नारी बिना सोचे-समझे अपनाने के लिए आकुल रही है उसके क्या-क्या परिणाम हुए हैं, उषा प्रियंवदा की कहानियों में यह अत्यन्त सूक्ष्मता के साथ मुखरित हुआ है। इसके अतिरिक्त
आधुनिक मध्य-वर्गीय परिवारों की क्या स्थिति है, उनकी मान्यताएँ किस सीमा तक परिवर्तित हो रही हैं और मूल्य-मर्यादा किन विषमताओं एवं विकृतियों के कारण खण्डित हो रही हैं और उस परिवेश में तथाकथित आधुनिक नारी अपनी उच्च शिक्षा एवं अस्तित्व-रक्षा की भावना से ओत-प्रोत किस प्रकार मिसफ़िट है-उषा प्रियंवदा ने अपनी कोई कहानियों में इसका बड़ा ही यथार्थ एवं सजीव चित्रण किया है। उनकी तीसरे ढंग की कहानियाँ वे हैं जिनमें पति पत्नी के सम्बन्धों की आधुनिक परिवर्तित सन्दर्भो में व्याख्या है। चौथे ढंग की कहानियाँ वे हैं जो उन्होंने विदेश जाने के पश्चात् लिखी हैं, जिनमें आत्मपरक दृष्टिकोण का विकास परिलक्षित होता है । 'वापसी', खुले हुए दरवाजे', 'झूठा दर्पण', 'पूर्ति', 'दो अंधेरे', 'छाँह', 'दृष्टिदोष', 'कोई नहीं', 'ज़िन्दगी और गुलाब के फल', 'मछलियाँ' आदि उनकी चर्चित कहानियाँ हैं, जो उपयुक्त सन्दर्भो में देखी जा सकती हैं। उषा प्रियंवदा की कहानियों में यद्यपि आधुनिक